भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाथ / राजकमल चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
वक़्त के ताबूत में सिमट नहीं पाते हैं
 
वक़्त के ताबूत में सिमट नहीं पाते हैं
 
गर्म उसके सफ़ेद हाथ । लाल फूलों से
 
गर्म उसके सफ़ेद हाथ । लाल फूलों से
ढका पड़ा रस्ता है सिकुड़ा हुआ
+
ढका पड़ा रहता है सिकुड़ा हुआ
 
उसका पूरा जिस्म एक अन्धेरे कोने में
 
उसका पूरा जिस्म एक अन्धेरे कोने में
 
ख़ासकर बुझी हुई आँखों के पीले
 
ख़ासकर बुझी हुई आँखों के पीले

13:21, 20 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

अमृता शेरगिल के लिए

वक़्त के ताबूत में सिमट नहीं पाते हैं
गर्म उसके सफ़ेद हाथ । लाल फूलों से
ढका पड़ा रहता है सिकुड़ा हुआ
उसका पूरा जिस्म एक अन्धेरे कोने में
ख़ासकर बुझी हुई आँखों के पीले
तालाब । ख़ासकर टूटे हुए स्तनों के
नीले स्तूप । लेकिन सफ़ेद उसके
गर्म हाथ ताबूत से बाहर थरथराते रहते
हैं ।