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देखूंगा, देखूंगा, मैं तुझे फिर एक बार | देखूंगा, देखूंगा, मैं तुझे फिर एक बार | ||
− | मरते हुए कवि को, चित्रा! अब भी यह आस | + | मरते हुए कवि को, चित्रा! अब भी है यह आस |
14:18, 12 सितम्बर 2008 का अवतरण
दिन वसन्त के आए फिर से आई वसन्त की रात
इतने बरस बाद भी, चित्रा! तू है मेरे साथ
पढ़ते थे तब साथ-साथ हम, लड़ते थे बिन बात
घूमा करते वन-प्रांतरों में डाल हाथ में हाथ
बदली तैर रही है नभ में झलक रहा है चांद
चित्रा! तेरी याद में मन है मेरा उदास
देखूंगा, देखूंगा, मैं तुझे फिर एक बार
मरते हुए कवि को, चित्रा! अब भी है यह आस