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"लगता नहीं है जी मेरा / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर
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दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में | दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में | ||
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21:24, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
कितना है बदनसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में