रोशनी दायरों में पिघलने लगी<br>
चाँदनी चांदनी आयेगी, ये न निश्चित हुआ, दस्तकें तट पे दे धार हँसने लगी<br><br>
टिमटिमाते हुए कुमकुमों से झरे<br>
पारिजातों की कलियों ने आवाज़ दे<br>
भेद अपना बताया है कचनार को<br>
चाँदनी चांदनी कैद फिर भी रही रात भर<br>चाँद चांद से न उड़े बादलों के कफ़न<br><br>
एक कंदील थी जो निशा के नयन में किरन बन गयी, फिर चमकने लगी<br>