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"कारवां सराय / मुइसेर येनिया" के अवतरणों में अंतर

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युद्ध के बाद
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ओह यह धरती की प्रजाति
बाँध दिया गया था मुझे
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ढोल बजाए गए , दरवाज़े बन्द थे
ज़ंजीरों से
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कारवाँ सराय में
जैसे गूँथी जाती है चोटी
+
  
मैं एक घोड़े पर सवार होकर
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एक मोमबत्ती, ब्रेड का एक टुकड़ा, सूप की एक डिश
उत्तर से आई थी
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और जई की एक बोरी घोड़े के लिए
उपहार बनकर
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गुलामों की मण्डी में
+
दरख़्तों की परछांईयों वाले आँगन में
मेरे सिले हुए होंठ
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पूरे तीन दिन
कभी नहीं खुले
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एक व्यापारी की आवाज़ के साथ
+
फिर एक कारवाँ तीन हजार ऊँटों का...
बिखर गई मेरी देह
+
अजनबियों के हाथों में
+
  
मैं इन्तज़ार करती रही
+
दीवार पर एक कुल्हाड़ा, युद्ध वाला कुल्हाड़ा
कि मेरा मालिक
+
फ़ायरप्लेस की वजह से शरीर गर्म हैं
मेरी ज़ंजीरें खोले
+
किसी उजाड़ स्वप्न में
+
  
उसकी नज़रें झुकीं
+
और चन्द्रमा बढ़ रहा है मानो निश्चित कर रहा है
नीचे
+
एक नया दिवसकाल
ताकि ठीक से देख सके मुझे
+
पर्दे में
+
 
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01:20, 6 दिसम्बर 2015 का अवतरण

ओह यह धरती की प्रजाति
ढोल बजाए गए , दरवाज़े बन्द थे
कारवाँ सराय में

एक मोमबत्ती, ब्रेड का एक टुकड़ा, सूप की एक डिश
और जई की एक बोरी घोड़े के लिए

दरख़्तों की परछांईयों वाले आँगन में
पूरे तीन दिन

फिर एक कारवाँ तीन हजार ऊँटों का...

दीवार पर एक कुल्हाड़ा, युद्ध वाला कुल्हाड़ा
फ़ायरप्लेस की वजह से शरीर गर्म हैं

और चन्द्रमा बढ़ रहा है मानो निश्चित कर रहा है
एक नया दिवसकाल ।