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गीत की चाहत / राकेश खंडेलवाल
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13:24, 17 अप्रैल 2008
बरसे बिन ही हवा में विलय हो गये<br><br>
चाँदनी
चांदनी
की गली में सितारे उगे<br>
कोई पहचान अपनी नहीं पा सके<br>
सरगमों की तराई में खिलते हुए<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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