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+ | जैसे भीनती रहती है वायु | ||
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16:22, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
मुझे शब्द चाहिए
हँसना चाहता हूँ
इतनी जोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएं
रोना चाहता हूँ
इतनी करुणा चाहिए कि
उसकी नमी से
खेत में बदल जाए सारा मरूस्थल
चिल्लाना चाहता हूँ
इतनी तीव्रता चाहिए जिससे
सामने खड़ी चट्टान में
पड़ जाए दरार
बात करना चाहता हूँ
ऐसे शब्द चाहिए
जो बहें हमारी रगों में
जैसे बहती रहती है नदी
जो भीनें हमारे फेफड़ों में
जैसे भीनती रहती है वायु
मुझे शब्द चाहिए
नदी और वायु जैसे शब्द ।