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"उत्तर-वासन्ती दिन / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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यह अप्रत्याशित उजला | यह अप्रत्याशित उजला | ||
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दिपती धूप-भरा उत्तर-वासन्ती दिन | दिपती धूप-भरा उत्तर-वासन्ती दिन | ||
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जिस में फूलों के रंग | जिस में फूलों के रंग | ||
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चौंक कर खिले, | चौंक कर खिले, | ||
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पंछियों की बोली है ठिठकी-सी, | पंछियों की बोली है ठिठकी-सी, | ||
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हम साझा भोग सके होते—तू-मैं— | हम साझा भोग सके होते—तू-मैं— | ||
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तो भी मैं इसे समूचा तुझ को भेंट चुका होता: | तो भी मैं इसे समूचा तुझ को भेंट चुका होता: | ||
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अब भी देता हूँ | अब भी देता हूँ | ||
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(चौंका, ठिठका मैं) | (चौंका, ठिठका मैं) | ||
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उतना ही सहज, कदाचित् तेरे उतना ही अनजाने भी। | उतना ही सहज, कदाचित् तेरे उतना ही अनजाने भी। | ||
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ले, दिया गया यह: | ले, दिया गया यह: | ||
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एक छोड़ उस लौ को जो | एक छोड़ उस लौ को जो | ||
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एकान्त मुझे झुलसाती है। | एकान्त मुझे झुलसाती है। | ||
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23:12, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
यह अप्रत्याशित उजला
दिपती धूप-भरा उत्तर-वासन्ती दिन
जिस में फूलों के रंग
चौंक कर खिले,
पंछियों की बोली है ठिठकी-सी,
हम साझा भोग सके होते—तू-मैं—
तो भी मैं इसे समूचा तुझ को भेंट चुका होता:
अब भी देता हूँ
(चौंका, ठिठका मैं)
उतना ही सहज, कदाचित् तेरे उतना ही अनजाने भी।
ले, दिया गया यह:
एक छोड़ उस लौ को जो
एकान्त मुझे झुलसाती है।