"स्मारक / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय }} ओ ब...) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
− | ओ बीच की पीढ़ी के | + | ओ बीच की पीढ़ी के लोगो, <br> |
तुम युवतर पीढ़ी से कहते हो: <br> | तुम युवतर पीढ़ी से कहते हो: <br> | ||
::तुम घृणा के धुन्ध में जनमे थे <br> | ::तुम घृणा के धुन्ध में जनमे थे <br> | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
::वह घृणा <br> | ::वह घृणा <br> | ||
::धुन्ध <br> | ::धुन्ध <br> | ||
− | :: | + | ::कालिमा— <br> |
::वही घृणा फिर ह्रदय धरो! <br> <br> | ::वही घृणा फिर ह्रदय धरो! <br> <br> | ||
पर जिस तुमसे पहले की पीढ़ी ने <br> | पर जिस तुमसे पहले की पीढ़ी ने <br> | ||
उन्हें जना <br> | उन्हें जना <br> | ||
− | क्या उन से, ओ | + | क्या उन से, ओ बिचौलियो! यह पूछा था <br> |
वे क्या मरे घृणा में? <br> | वे क्या मरे घृणा में? <br> | ||
खंडहर होंगे ढूह घृणा के <br> | खंडहर होंगे ढूह घृणा के <br> | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
तुम जो खुद उन के नाम के बल पर जीते हो, <br> | तुम जो खुद उन के नाम के बल पर जीते हो, <br> | ||
− | क्या वह बल घृणा को ही देना चाहते | + | क्या वह बल घृणा को ही देना चाहते हो— <br> |
उन के नाम का बल, उन का बल, <br> | उन के नाम का बल, उन का बल, <br> | ||
जिन्होंने अपने प्राण <br> | जिन्होंने अपने प्राण <br> | ||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
मोल आँकनेवालों की नहीं, मूल्यों को दिए... <br> <br> | मोल आँकनेवालों की नहीं, मूल्यों को दिए... <br> <br> | ||
− | ये | + | ये स्मारक—नए-पुरान ढूह—नहीं, <br> |
वह मिट्टी ही है पूज्य: <br> | वह मिट्टी ही है पूज्य: <br> | ||
प्यार की मिट्टी <br> | प्यार की मिट्टी <br> | ||
जिस से सरजन होता है <br> | जिस से सरजन होता है <br> | ||
मूल्यों का <br> | मूल्यों का <br> | ||
− | पीढ़ी-दर-पीढ़ी! | + | पीढ़ी-दर-पीढ़ी! |
− | वोल्गोग्राद (स्तालिनग्राद) <br> | + | |
− | जून १९६६ | + | <span style="font-size:14px">वोल्गोग्राद (स्तालिनग्राद) <br> |
+ | जून १९६६</span> |
16:11, 31 मार्च 2008 का अवतरण
ओ बीच की पीढ़ी के लोगो,
तुम युवतर पीढ़ी से कहते हो:
- तुम घृणा के धुन्ध में जनमे थे
- तुम आज भी घृणा करो।
- गली-गली, नुक्कड़-चौराहे
- बचे खड़े खंडहरों
- या कि युद्ध के बाद रचे स्मारक-स्तूपों को देख-देख
- फिर याद करो
- वह घृणा
- धुन्ध
- कालिमा—
- वही घृणा फिर ह्रदय धरो!
- तुम घृणा के धुन्ध में जनमे थे
पर जिस तुमसे पहले की पीढ़ी ने
उन्हें जना
क्या उन से, ओ बिचौलियो! यह पूछा था
वे क्या मरे घृणा में?
खंडहर होंगे ढूह घृणा के
और घृणा के स्मारक होंगे नए तुम्हारे थम्भ,
- चौर, गुम्बद, मीनारें,
- चौर, गुम्बद, मीनारें,
पर वे जो मरे
घृणा में नहीं, प्यार में मरे!
जिस मिट्टी को दाब रहे हैं ये स्मारक सदर्प,
चप्पा-चप्पा उस का, कनी-कनी साक्षी है
उस अनन्य एकान्त प्यार का
जो कि घृणा से उपजे हर संकट को काट गया!
तुम जो खुद उन के नाम के बल पर जीते हो,
क्या वह बल घृणा को ही देना चाहते हो—
उन के नाम का बल, उन का बल,
जिन्होंने अपने प्राण
घृणा को नहीं, प्यार को दिए,
स्मारकों को नहीं, मिट्टी को दिए,
मोल आँकनेवालों की नहीं, मूल्यों को दिए...
ये स्मारक—नए-पुरान ढूह—नहीं,
वह मिट्टी ही है पूज्य:
प्यार की मिट्टी
जिस से सरजन होता है
मूल्यों का
पीढ़ी-दर-पीढ़ी!
वोल्गोग्राद (स्तालिनग्राद)
जून १९६६