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17:55, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

कुशल-क्षेम से
पिया-गेह में
बहन तुम्हारी है

सुबह
सास की झिड़की
वदन झिंझोड़ जगाती है
और ननद की
जली-कटी
नश्तरें चुभाती है
पूज्य ससुर की
आँखों की
बढ़ गयी खुमारी है

नहीं हाथ में
मेहंदी
झाडू, चूल्हा-चौका है
देवर रहा तलाश
निगल जाने का
मौका है
और जेठ की
जिह्वा पर भी रखी
दुधारी है

पति परमेश्वर
सिर्फ चाहता
खाना गोस्त गरम
और पड़ोसिन के घर
लेती है
अफवाह जनम
करमजली होती
शायद
दुखियारी नारी है

कई लाख लेकर भी
गया बनाया
दासी है
और लिखी
किस्मत में शायद
गहन उदासी है
नहीं सहूंगी-
अब दुख की भर गयी
तगारी है।