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"बर्वरीक केरोॅ वध / सुरेन्द्र प्रसाद यादव" के अवतरणों में अंतर

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कुरुक्षेत्रा रोॅ विशाल मैदान छेलै
+
बर्बरीक घटोत्कच रोॅ सपूत छेलै, भीमसेन रोॅ दुलारोॅ पोता छेलै
दोनोॅ दलोॅ रोॅ योद्धा छेलै ।
+
घटोत्कच शस्त्रा-अस्त्रा ज्ञान सेॅ, परास्त करी देनें छेलै ।
  
अलग-अलग शस्त्रा सेॅ सुसज्जित छेलै
+
मौर्वी सेॅ विवाह रचैनें छेलै
पूरा अस्त्रा-शस्त्रा सेॅ सुसज्जित छेलै
+
मौर्वी रोॅ पुत्रा बड़ा वीर लड़ाकू निकललै
  
दोनोॅ दल आमना-सामना खड़ा छेलै
+
दादा केॅ साधारण युद्ध कौशल मेॅ हराय देनेॅ छेलै
आवेॅ पल भरोॅ रोॅ इन्तजारोॅ मेॅ डटलोॅ छेलै ।
+
वनवासोॅ रोॅ तेरह बरस बीती रहलोॅ छेलै ।
  
दोनोॅ तरफोॅ रोॅ बाकुड़ा लड़ाके तत्पर छेलै
+
सब्भेॅ पाण्डव उपप्लव वनोॅ मेॅ एकत्रित होय रहलोॅ छेलै
लड़ै वास्तें बांह खिललोॅ छेलै
+
वहाँ सेॅ चली केॅ पाण्डव कुरुक्षेत्रा ऐलै
  
अचानक धर्मराज आपनोॅ कवच उतारी देलकै
+
हौ जगह कौरव-पाण्डव उपस्थित होलोॅ छेलै
अस्त्रा-शस्त्रा रथोॅ पर रखी केॅ चली देलकै
+
भीष्म जी नेॅ दोनोॅ रथियोॅ अतिरथियों रोॅ गणना करलकै
  
पैदल कौरव सेना रोॅ तरफ चली देलकै
+
युधिष्ठिर केॅ सब सामाचार गुप्तचरोॅ द्वारा मिललै
भीष्म जन्नें खड़ा छेलै, हुनी डेग बढ़ाय देलकै
+
श्रीकृष्ण सें कहलकै, केशव
  
है दृश्य देखी केॅ चारोॅ भाय आश्चर्य करलकै
+
दुर्योधन रोॅ कौनो वीर कत्तेॅ समय में पाण्डव
चारोॅ रथोॅ सेॅ उतरी केॅ हुनकोॅ पीछु चली देलकै
+
सेना सहित केरोॅ वध करै पारे छोॅ
  
कृष्ण है सब्भे रोॅ पीछू-पीछू चली पड़लै
+
दुर्योधन केरोॅ प्रश्नोॅ रोॅ जबाब देलकै
चारोॅ भाय चिंतित होय केॅ भगवान सेॅ पूछलकै
+
पितामह कृपाचार्य नेॅ संकेत देलकै
  
युधिष्ठिर आपनोॅ धूनोॅ मेॅ चललोॅ जाय छेलै
+
एक महिना केरोॅ अन्दर मेॅ
पूछला पर कुछ जवाब नेॅ दैनेॅ छेलै
+
पाण्डव सेना केॅ समाप्त करै पारै छी
  
कृष्ण नेॅ सब्भेॅ केॅ शांति रहै रोॅ आदेश देनेॅ छेलै
+
द्रोणाचार्य नेॅ कहलकै पन्द्रह दिनोॅ मेॅ
युधिष्ठिर धर्म रोॅ पालन करै लेॅ चली देनेॅ छेलै
+
अश्वाथामा नें दस दिनोॅ मेॅ
  
कौरव दलोॅ मेॅ हलचल मची गेलोॅ छेलै
+
कर्ण नेॅ कहलकै, छः दिनोॅ मेॅ
शत्राुदल बोलै लागलै, युधिष्ठिर डरी गेलै
+
पूरे पाण्डव सेना केॅ समाप्त करै लेॅ व्रत लै लेलकै
  
शत्राुपक्ष शंका करै मेॅ देरी नै करलकै
+
युधिष्ठिर नेॅ देवकीनन्दन सेॅ जोरदार प्रश्न करलकै
भीष्म पितामह केॅ फोड़ै रोॅ काम करलकै
+
हमरा पक्षोॅ मेॅ कौन योद्धा येन्होॅ छै
  
युधिष्ठिर सीधे, भीष्म पितामह रोॅ पास गेलै
+
है विषय वस्तु पर उचित प्रतिक्रिया दियेॅ पारै छै
हाथ जोड़ी केॅ प्रणाम करलकै, समीप गेलै
+
अर्जुन बोललै ! महाराज
  
आपनें रोॅ साथ युद्ध करना विवशता छै
+
भीष्म आरोॅ अन्य महारथियोॅ केरोॅ है घोषणा सरासर असंगत छै
आपनें आशीर्वाद दियै युद्ध वास्तें लाचारी छै ।
+
हमरा पक्षोॅ मेॅ दुर्धष योद्धा काल केरोॅ समान अजेय छै ।
  
भीष्म बोललैµ भारत श्रेष्ठ ! आबी केॅ तोहें
+
सात्यकि, भीमसेन, प्रपद, घटोत्कच विराट, धृष्टद्युम आदि
युद्ध रोॅ अनुमति मांगल्हेॅ, अवश्य जीतवे तोहें
+
आपनोॅ पक्षोॅ मेॅ अजय श्रीकृष्ण छै
  
है समय तोहें यहाँ नै ऐतिहोॅ
+
है सब वीरें पूरे कौरव सेना केॅ
पराजय रोॅ भारी शाप तोरा देतिहोॅ
+
पलभर - नेश्तनाबूत करै पारै छै
  
जा पार्थ ! समर क्षेत्रोॅ मेॅ लड़ोॅ
+
अर्जुन नेॅ भीष्म प्रतिज्ञा करलकै
हमरा सेॅ वरदान मांगी लेल्हेॅ, आवेॅ लड़ोॅ
+
बर्बरीक नेॅ कहलकै.....
  
भीष्म बोललैµ मनुष्य धन रोॅ दास होय छै
+
महात्मा अर्जुन आपनें रोॅ प्रतिज्ञा
धन केकरोॅ दास नै होय छै ।
+
हमरा असह्ाय लागै छै ।
  
हौ बोललै ! कौरव धनोॅ सेॅ बसोॅ मेॅ रखनें छै
+
बर्बरीक बोललैµअर्जुन श्रीकृष्ण
लाचार होय केॅ हिनका तरफोॅ सेॅ युद्ध करै लेॅ लागै छै
+
आपनें सब खड़ा-खड़ा होय केॅ ।
  
आपनें अजेय छियै, आपनें केॅ कैसें जीतवै
+
हम्में पल भरी मेॅ सब्भेॅ कौरव सेना केॅ
दोसरोॅ बार आबी केॅ पूछियोॅ तबेॅ बताय देवै ।
+
यमलोक रोॅ द्वार देखाय देवै ।
  
धर्मराज गुरु द्रोणाचार्य रोॅ पास गेलोॅ छेलै
+
सिद्धाम्बिका रोॅ देलोॅ खड्ग दिव्य धनुष बाणोॅ रोॅ
युद्ध रोॅ अनुमति माँगै लेॅ गेलोॅ छेलै
+
कृत्य अति सरल छै
  
गुरु बोललैµ शस्त्रा रहतेॅ हमरा परास्त नै करै पारतै
+
बर्बरीक रोॅ वाणी सुनी केॅ, क्षत्रिय सब्भे आंदोलित होय गेलै
अप्रिय सामाचार सुनला पर शस्त्रा रखला पर मारेॅ पारतै
+
अर्जुन लज्जित महसूस करलकै, श्रीकृष्ण केॅ अवलोकन नै करलकै
  
हौ समय मेॅ ध्यानस्थ होय जैवै
+
भगवान बोललै-पार्थ, बर्बरीक आपनोॅ सही शक्ति रोॅ
हौ वक्त हमरा मारे पारवै ।
+
परिचय दै मेॅ कोय कसर नै राखनें छै
  
धर्मराज कृपाचार्य रोॅ पास गेलै
+
अद्भुत् बात हिनकोॅ बारे मेॅ, सब्भै आदमी बोलै छै
आशीर्वाद लै वास्तें पैर छुऐॅ लेॅ गेलै
+
हिनी पाताल लोकोॅ मेॅ नौ करोड़ दैत्योॅ केॅ
  
दारुण बात पूछतै, अचेत होय गेलोॅ छेलै
+
पल भरोॅ मेॅ मौत रोॅ घाट उतारी देनेॅ छै
कृपाचार्य हुनका मतलब समझाय देनें छेलै
+
वासुदेव नेॅ बर्बरीक सेॅ कहलकै
  
हे ! राजन केकरो द्वारा हमरा नै मारै पारतै
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वत्स भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण सुरक्षित सेना केॅ
तोरा लेली विजय रोॅ विनती हमेशा करवै
+
पल भरोॅ मेॅ केना केॅ मारभोॅ
  
नित्य प्रातः भगवान सेॅ प्रार्थना करवै
+
है सब्भै पर विजय पाना, शिवजी केॅ दुस्कर पडे़ पारे छौ
तोरोॅ विजय मेॅ बाधक नै बनवै
+
तोरोॅ पास कोन उपाय छौं, छोटोॅ मुँह बड़ोॅ बात करे छौ
  
युधिष्ठिर नेॅ शल्य मामा केॅ प्रणाम करलकै
+
केना तोरा पर विश्वास करभौं
शल्य नेॅ युधिष्ठिर केॅ आशीष देलकै
+
तबेॅ बालक बर्बरीक केरोॅ मुखोॅ सें वाणी सुनलकै
  
पितामह नांखी शल्य नेॅ आश्वासन देलकै
+
बर्बरीक गुस्सा सेॅ आग बबूला होय गेलै
निष्ठा रोॅ वचन सेॅ कर्ण केॅ हतोत्साह करलकै
+
बाणोॅ केॅ लाल रंगोॅ रोॅ भस्मोॅ सेॅ ढकी देलकै
  
घृणित बातोॅ सेॅ हुनकोॅ ध्यान टूटलै
+
कान तक बाणोॅ केॅ खींची लेलकै, आरोॅ छोड़ी देलकै
होकरोॅ युद्धभूमि मेॅ मनोबल घटलै
+
बाणोॅ केरोॅ मुखोॅ सेॅ भस्म उड़लै
  
गुरुजनोॅ आरोॅ बड़ोॅ केॅ प्रणाम करी केॅ लौटलै
+
दोनोॅ सेना रोॅ मर्मस्थल पर गिराय देलकै
विजय रोॅ आर्शीवाद लै केॅ खेमा लोटलै
+
पाँच पाण्डव, कृपाचार्य, अश्वथामा
  
युधिष्ठिर रोॅ विनम्रता-शालीनता सेॅ
+
ये सब्भै केरोॅ तनोॅ रोॅ स्पर्श नै होलै, बर्बरीक बोललैµअवलोकन करलियै।
चारोॅ भाय अवगत होलै, होकरोॅ कुशलता सेॅ
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मरै वाला वीरोॅ रोॅ मर्मस्थल रोॅ, तुरंत-फुरंत मुआयना करी लेलियै
  
धर्मराज रोॅ विनम्रता नेॅ जगह बनैलकै
+
बस ! दू पल मेॅ मारी केॅ गिरा दै मेॅ सक्षम छियै
भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य रोॅ हृदय मेॅ पैठ जमैलकै
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है देखी केॅ युधिष्ठिर केॅ आश्चर्य लागी गेलै ।
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लाचार होय केॅ धन्य ! धन्य ! कहै लागलै
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विचित्रा कोलाहल छाय गेलै ।
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श्रीकृष्ण नै आव देखलकै नेॅ ताव देखलकै, तीक्ष्ण बाणोॅ सेॅ
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बर्बरीक रोॅ मस्तक पृथ्वी पर गिराय देलकै ।
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भीम घटोत्कच केॅ बड़ा सदमा होलै
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तत्क्षण सिद्धाम्बिक केरोॅ देवियाँ पहुँची गेलै ।
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हौ बोललै, श्रीकृष्ण रोॅ अपराध नै छै
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बर्बरीक पूर्वजन्म मेॅ सूर्यवर्चा पक्ष छेलै ।
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पृथ्वी भारोॅ सेॅ घबराय गेलोॅ छेलै
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मेरु पहाड़ोॅ पर देवता रोॅ सामना ।
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आपनोॅ दुखड़ा सुनी रहलोॅ छेलै
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है पर वें कहिनें छेलै ।
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हम्में अकेले अवतार लै केॅ दैत्य समूह रोॅ संहार करी देवै
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हमरा अछैतै, कोय देवता पृथ्वी पर अवतरित होलेॅ जरूरत नै पड़तै
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हेकरा बोली पर ! ब्रह्मा जी जाज्वल्यवान होय गेलोॅ छेलै,
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आरोॅ कहलकैµदुर्मते! तोहें मोह बस। अहमं सेॅ दुस्साहस करी रहलोॅ छौं।
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जबेॅ पृथ्वी पर नाश रोॅ युद्ध होवै लागतै
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वही समय मेॅ कृष्णोॅ रोॅ हाथोॅ सेॅ तोरा मरै लेॅ पड़तौं
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तत्काल श्रीकृष्णे नेॅ चण्डिका सेॅ कहलकै
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हेकरोॅ सिरोॅ केॅ अमृत सेॅ सींची केॅ
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राहु के तरह अजर-अमर करी दोहोॅ
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देवी नेॅ आदेश के पालन करलकै ।
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जीवित रहै रोॅ आर्शीवाद देलकै
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मधुसूदन केॅ प्रणाम करलकै ।
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आबेॅ हम्में महाभारत युद्ध रोॅ
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अवलोकन करे मेॅ सामथ्र्य होवै ।
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मस्तक पहाड़ोॅ रोॅ शिखर पर राखी देलकै
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जबेॅ युद्ध समाप्त होय गेलै ।
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आपनोॅ-आपनोॅ बखान करै लागलै ।
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पाण्डव पक्षोॅ रोॅ योद्धा केॅ गर्व होय गेलोॅ छेलै।
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सब्भे नेॅ आपनें बढ़ाय प्रशंसा रोॅ पुल बाँधै लागलै ।
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वादोॅ मेॅ सब्भै नेॅ निर्णय करलकै
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बर्बरीक नेॅ कहलकै ।
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हम्में तेॅ खाली एक्के आदमी केॅ युद्ध मेॅ लड़तेॅ देखलियै
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है आदमी केॅ बायाँ बगल पाँच मुख, आरोॅ दस हाथ छेलै ।
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हाथोॅ मेॅ त्रिशूल, आयुद्य संभालनें छेलै
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दाहिना बगल होकरा एक मुख आरो चार भुजा छेलै ।
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चक्र, शस्त्रोॅ सेॅ सुसज्जित छेलै
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बायाँ तरफ मस्तक जटा सेॅ शोभायमान छेलै ।
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दाहिना बगल मस्तक पर मुकुट जगमगाय रहलोॅ छेलै
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बायाँ बगल भस्म लागलोॅ छेलै ।
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दाहिना बगल चंदन लेपलोॅ छेलै
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बायाँ बगल चन्द्रकला चमकी रहलोॅ छेलै ।
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दाहिना बगल कौस्तुक मणि झलमलाय रहलोॅ छेलै
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हुनके रुद्र-विष्णु रूपें कौरव सेना केॅ समूल नष्ट करी रहलोॅ छै।
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आरोॅ हम्में केकरोॅ संहार करते दोसरा केॅ नैं देखनें छियै
 +
 
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आकाश मंडल उद्भासित होय गेलै आरो पुष्प वृष्टि होवेॅ लागलै ।
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साधु-साधु रोॅ ध्वनि सें अच्छादित होय गेलै
 +
 
 +
ई सुनी, केॅ पाण्डव सब आपनोॅ
 +
फिजूल गर्व पर अधिक लज्जित होलै।
  
धर्मराज, शालीनता, सहिष्णुता पावी केॅ
 
विजय रोॅ श्रेय मिललै पाण्डव पक्षोॅ केॅ ।
 
 
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04:32, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

बर्बरीक घटोत्कच रोॅ सपूत छेलै, भीमसेन रोॅ दुलारोॅ पोता छेलै
घटोत्कच शस्त्रा-अस्त्रा ज्ञान सेॅ, परास्त करी देनें छेलै ।

मौर्वी सेॅ विवाह रचैनें छेलै
मौर्वी रोॅ पुत्रा बड़ा वीर लड़ाकू निकललै ।

दादा केॅ साधारण युद्ध कौशल मेॅ हराय देनेॅ छेलै
वनवासोॅ रोॅ तेरह बरस बीती रहलोॅ छेलै ।

सब्भेॅ पाण्डव उपप्लव वनोॅ मेॅ एकत्रित होय रहलोॅ छेलै
वहाँ सेॅ चली केॅ पाण्डव कुरुक्षेत्रा ऐलै ।

हौ जगह कौरव-पाण्डव उपस्थित होलोॅ छेलै
भीष्म जी नेॅ दोनोॅ रथियोॅ अतिरथियों रोॅ गणना करलकै ।

युधिष्ठिर केॅ सब सामाचार गुप्तचरोॅ द्वारा मिललै
श्रीकृष्ण सें कहलकै, केशव ।

दुर्योधन रोॅ कौनो वीर कत्तेॅ समय में पाण्डव
सेना सहित केरोॅ वध करै पारे छोॅ ।

दुर्योधन केरोॅ प्रश्नोॅ रोॅ जबाब देलकै
पितामह कृपाचार्य नेॅ संकेत देलकै ।

एक महिना केरोॅ अन्दर मेॅ
पाण्डव सेना केॅ समाप्त करै पारै छी ।

द्रोणाचार्य नेॅ कहलकै पन्द्रह दिनोॅ मेॅ
अश्वाथामा नें दस दिनोॅ मेॅ ।

कर्ण नेॅ कहलकै, छः दिनोॅ मेॅ
पूरे पाण्डव सेना केॅ समाप्त करै लेॅ व्रत लै लेलकै ।

युधिष्ठिर नेॅ देवकीनन्दन सेॅ जोरदार प्रश्न करलकै
हमरा पक्षोॅ मेॅ कौन योद्धा येन्होॅ छै ।

है विषय वस्तु पर उचित प्रतिक्रिया दियेॅ पारै छै
अर्जुन बोललै ! महाराज ।

भीष्म आरोॅ अन्य महारथियोॅ केरोॅ है घोषणा सरासर असंगत छै
हमरा पक्षोॅ मेॅ दुर्धष योद्धा काल केरोॅ समान अजेय छै ।

सात्यकि, भीमसेन, प्रपद, घटोत्कच विराट, धृष्टद्युम आदि
आपनोॅ पक्षोॅ मेॅ अजय श्रीकृष्ण छै ।

है सब वीरें पूरे कौरव सेना केॅ
पलभर - नेश्तनाबूत करै पारै छै ।

अर्जुन नेॅ भीष्म प्रतिज्ञा करलकै
बर्बरीक नेॅ कहलकै..... ।

महात्मा अर्जुन आपनें रोॅ प्रतिज्ञा
हमरा असह्ाय लागै छै ।

बर्बरीक बोललैµअर्जुन श्रीकृष्ण
आपनें सब खड़ा-खड़ा होय केॅ ।

हम्में पल भरी मेॅ सब्भेॅ कौरव सेना केॅ
यमलोक रोॅ द्वार देखाय देवै ।

सिद्धाम्बिका रोॅ देलोॅ खड्ग दिव्य धनुष बाणोॅ रोॅ
कृत्य अति सरल छै ।

बर्बरीक रोॅ वाणी सुनी केॅ, क्षत्रिय सब्भे आंदोलित होय गेलै
अर्जुन लज्जित महसूस करलकै, श्रीकृष्ण केॅ अवलोकन नै करलकै ।

भगवान बोललै-पार्थ, बर्बरीक आपनोॅ सही शक्ति रोॅ
परिचय दै मेॅ कोय कसर नै राखनें छै

अद्भुत् बात हिनकोॅ बारे मेॅ, सब्भै आदमी बोलै छै
हिनी पाताल लोकोॅ मेॅ नौ करोड़ दैत्योॅ केॅ ।

पल भरोॅ मेॅ मौत रोॅ घाट उतारी देनेॅ छै
वासुदेव नेॅ बर्बरीक सेॅ कहलकै ।

वत्स भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण सुरक्षित सेना केॅ
पल भरोॅ मेॅ केना केॅ मारभोॅ ।

है सब्भै पर विजय पाना, शिवजी केॅ दुस्कर पडे़ पारे छौ
तोरोॅ पास कोन उपाय छौं, छोटोॅ मुँह बड़ोॅ बात करे छौ ।

केना तोरा पर विश्वास करभौं
तबेॅ बालक बर्बरीक केरोॅ मुखोॅ सें वाणी सुनलकै ।

बर्बरीक गुस्सा सेॅ आग बबूला होय गेलै
बाणोॅ केॅ लाल रंगोॅ रोॅ भस्मोॅ सेॅ ढकी देलकै ।

कान तक बाणोॅ केॅ खींची लेलकै, आरोॅ छोड़ी देलकै
बाणोॅ केरोॅ मुखोॅ सेॅ भस्म उड़लै ।

दोनोॅ सेना रोॅ मर्मस्थल पर गिराय देलकै
पाँच पाण्डव, कृपाचार्य, अश्वथामा ।

ये सब्भै केरोॅ तनोॅ रोॅ स्पर्श नै होलै, बर्बरीक बोललैµअवलोकन करलियै।
मरै वाला वीरोॅ रोॅ मर्मस्थल रोॅ, तुरंत-फुरंत मुआयना करी लेलियै ।

बस ! दू पल मेॅ मारी केॅ गिरा दै मेॅ सक्षम छियै
है देखी केॅ युधिष्ठिर केॅ आश्चर्य लागी गेलै ।

लाचार होय केॅ धन्य ! धन्य ! कहै लागलै
विचित्रा कोलाहल छाय गेलै ।

श्रीकृष्ण नै आव देखलकै नेॅ ताव देखलकै, तीक्ष्ण बाणोॅ सेॅ
बर्बरीक रोॅ मस्तक पृथ्वी पर गिराय देलकै ।

भीम घटोत्कच केॅ बड़ा सदमा होलै
तत्क्षण सिद्धाम्बिक केरोॅ देवियाँ पहुँची गेलै ।

हौ बोललै, श्रीकृष्ण रोॅ अपराध नै छै
बर्बरीक पूर्वजन्म मेॅ सूर्यवर्चा पक्ष छेलै ।

पृथ्वी भारोॅ सेॅ घबराय गेलोॅ छेलै
मेरु पहाड़ोॅ पर देवता रोॅ सामना ।

आपनोॅ दुखड़ा सुनी रहलोॅ छेलै
है पर वें कहिनें छेलै ।

हम्में अकेले अवतार लै केॅ दैत्य समूह रोॅ संहार करी देवै
हमरा अछैतै, कोय देवता पृथ्वी पर अवतरित होलेॅ जरूरत नै पड़तै

हेकरा बोली पर ! ब्रह्मा जी जाज्वल्यवान होय गेलोॅ छेलै,
आरोॅ कहलकैµदुर्मते! तोहें मोह बस। अहमं सेॅ दुस्साहस करी रहलोॅ छौं।

जबेॅ पृथ्वी पर नाश रोॅ युद्ध होवै लागतै
वही समय मेॅ कृष्णोॅ रोॅ हाथोॅ सेॅ तोरा मरै लेॅ पड़तौं ।

तत्काल श्रीकृष्णे नेॅ चण्डिका सेॅ कहलकै
हेकरोॅ सिरोॅ केॅ अमृत सेॅ सींची केॅ

राहु के तरह अजर-अमर करी दोहोॅ
देवी नेॅ आदेश के पालन करलकै ।

जीवित रहै रोॅ आर्शीवाद देलकै
मधुसूदन केॅ प्रणाम करलकै ।

आबेॅ हम्में महाभारत युद्ध रोॅ
अवलोकन करे मेॅ सामथ्र्य होवै ।

मस्तक पहाड़ोॅ रोॅ शिखर पर राखी देलकै
जबेॅ युद्ध समाप्त होय गेलै ।

आपनोॅ-आपनोॅ बखान करै लागलै ।
पाण्डव पक्षोॅ रोॅ योद्धा केॅ गर्व होय गेलोॅ छेलै।

सब्भे नेॅ आपनें बढ़ाय प्रशंसा रोॅ पुल बाँधै लागलै ।
वादोॅ मेॅ सब्भै नेॅ निर्णय करलकै

बर्बरीक नेॅ कहलकै ।
हम्में तेॅ खाली एक्के आदमी केॅ युद्ध मेॅ लड़तेॅ देखलियै

है आदमी केॅ बायाँ बगल पाँच मुख, आरोॅ दस हाथ छेलै ।
हाथोॅ मेॅ त्रिशूल, आयुद्य संभालनें छेलै

दाहिना बगल होकरा एक मुख आरो चार भुजा छेलै ।
चक्र, शस्त्रोॅ सेॅ सुसज्जित छेलै

बायाँ तरफ मस्तक जटा सेॅ शोभायमान छेलै ।
दाहिना बगल मस्तक पर मुकुट जगमगाय रहलोॅ छेलै

बायाँ बगल भस्म लागलोॅ छेलै ।
दाहिना बगल चंदन लेपलोॅ छेलै

बायाँ बगल चन्द्रकला चमकी रहलोॅ छेलै ।
दाहिना बगल कौस्तुक मणि झलमलाय रहलोॅ छेलै

हुनके रुद्र-विष्णु रूपें कौरव सेना केॅ समूल नष्ट करी रहलोॅ छै।
आरोॅ हम्में केकरोॅ संहार करते दोसरा केॅ नैं देखनें छियै

आकाश मंडल उद्भासित होय गेलै आरो पुष्प वृष्टि होवेॅ लागलै ।
साधु-साधु रोॅ ध्वनि सें अच्छादित होय गेलै

ई सुनी, केॅ पाण्डव सब आपनोॅ
फिजूल गर्व पर अधिक लज्जित होलै।