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"गाँवोॅ के हवा / अचल भारती" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवा | |
− | + | बड़ी उदार छेलै ! | |
− | + | महाँकोॅ सें करै छेलै गमगम, | |
− | + | आरो ओकरा सें टपकै दुलार छेलै ! | |
− | + | तही लेॅ उछलैनें छेलै | |
− | + | चारो दिसें नें गांवोॅ के रीति-रेवाज ! | |
− | + | आरो कवि सिनी | |
− | + | दौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ छेलै गाँव में | |
− | + | अखनी वहेॅ गाँव छेकै ! | |
− | + | गाँवोॅ के हवा बीमार छै, | |
− | + | शहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै ! | |
− | + | लोगोॅ के आगूं लाज बेकार छै, | |
− | + | आरो कवि छै कि आरी पर बैठी केॅ | |
− | + | गाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै ! | |
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02:45, 22 जून 2016 के समय का अवतरण
सुनै छियै कहियो गाँवोॅ के हवा
बड़ी उदार छेलै !
महाँकोॅ सें करै छेलै गमगम,
आरो ओकरा सें टपकै दुलार छेलै !
तही लेॅ उछलैनें छेलै
चारो दिसें नें गांवोॅ के रीति-रेवाज !
आरो कवि सिनी
दौड़ी-दौड़ी ऐलोॅ छेलै गाँव में
अखनी वहेॅ गाँव छेकै !
गाँवोॅ के हवा बीमार छै,
शहरोॅ सें ऐलोॅ सब कुछ उधार छै !
लोगोॅ के आगूं लाज बेकार छै,
आरो कवि छै कि आरी पर बैठी केॅ
गाय-गाय झुम्मर में खोजै संसार छै !