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"स्त्रियाँ / आभा बोधिसत्त्व" के अवतरणों में अंतर
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पदवियाँ पीढी दर पीढी स्त्रियाँ बना रही हैं | पदवियाँ पीढी दर पीढी स्त्रियाँ बना रही हैं | ||
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उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो-चार बुझे-अनबुझे | उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो-चार बुझे-अनबुझे | ||
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शव्दों से , | शव्दों से , | ||
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दे रही हैं ढाढ़स, बन रही हैं ढाल, | दे रही हैं ढाढ़स, बन रही हैं ढाल, | ||
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सदियों से सह रही हैं मान-अपमान घर और बाहर. | सदियों से सह रही हैं मान-अपमान घर और बाहर. | ||
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स्त्रियाँ बढा रही हैं मर्यादा कुल की ख़ुद अपनी ही | स्त्रियाँ बढा रही हैं मर्यादा कुल की ख़ुद अपनी ही | ||
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मर्यादा खोकर, | मर्यादा खोकर, | ||
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भागम-भाग में बराबरी कर जाने के लिये | भागम-भाग में बराबरी कर जाने के लिये | ||
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दौड रही हैं पीछे-पीछे, | दौड रही हैं पीछे-पीछे, | ||
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कहीं खो रही हैं | कहीं खो रही हैं | ||
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कहीं अपनापन, | कहीं अपनापन, | ||
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कहीं सर्वस्व. | कहीं सर्वस्व. | ||
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23:27, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
स्त्रियाँ घरों में रह कर बदल रही हैं
पदवियाँ पीढी दर पीढी स्त्रियाँ बना रही हैं
उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो-चार बुझे-अनबुझे
शव्दों से ,
दे रही हैं ढाढ़स, बन रही हैं ढाल,
सदियों से सह रही हैं मान-अपमान घर और बाहर.
स्त्रियाँ बढा रही हैं मर्यादा कुल की ख़ुद अपनी ही
मर्यादा खोकर,
भागम-भाग में बराबरी कर जाने के लिये
दौड रही हैं पीछे-पीछे,
कहीं खो रही हैं
कहीं अपनापन,
कहीं सर्वस्व.