भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | ||
− | + | रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे | |
− | + | दूध बिलौने से पहले | |
− | + | माँ | |
− | + | चक्की पीसती, | |
− | + | और मैं | |
− | + | घूमेड़े में | |
− | + | आराम से | |
− | + | सोता | |
− | + | तारीफ़ों में बँधीं | |
− | + | माँ | |
− | + | जिसे मैंने कभी | |
− | + | सोते | |
− | + | नहीं देखा | |
− | + | आज | |
− | + | जवान होने पर | |
− | + | एक प्रश्न घुमड़ आया है - | |
− | + | पिसती | |
− | + | चक्की थी | |
− | + | या | |
− | + | माँ | |
− | + | माँ |
19:04, 27 अप्रैल 2008 का अवतरण
रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
दूध बिलौने से पहले
माँ
चक्की पीसती,
और मैं
घूमेड़े में
आराम से
सोता
तारीफ़ों में बँधीं माँ जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा
आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है -
पिसती चक्की थी या माँ
माँ