भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हंसवाहिनी / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
अपने श्वेताम्बर से | अपने श्वेताम्बर से | ||
जग को आवृत कर दो। | जग को आवृत कर दो। | ||
+ | </poem> |
18:46, 12 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
ओ तेरे सान्निध्य में
ऋषिगण
ज्ञानमय दुग्धपान कर
कृतकृत्य हो
सुकृत सरोजमय
जलधार से सिंचित
उस पार बहते हुए चले गये
और, मैं तेरे अभाव में
शुष्क कंटमय वीरान सा
परिमित
अरू जीवन वाहक
बनकर रह गया
ओ रसातलवासिनी अब तो तुम
ऊर्ध्व गामिनी बन कर
पुनः बहो कपाल में
ओ माँ, मैं तेरा अर्चन करता
अपनी वीणा के तार से
वेद की ऋचाओं को
अनावरण कर दो
ओ हंसवाहिनी
अपने श्वेताम्बर से
जग को आवृत कर दो।