भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पीड़ रो सुख / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatRajasthaniRachna}} | {{KKCatRajasthaniRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | मुंडै छळकती ममता | |
+ | हाँचल झबळकतौ हेत | ||
+ | आंख्यां रो उमाव | ||
+ | भरै साख, | ||
+ | सुरगळै सुख री | ||
+ | वै मूंधा खिण | ||
+ | अंवेरण नैं | ||
+ | पड़ जावै | ||
+ | जिनगाणीं कम | ||
+ | फगत अैक ‘ज | ||
+ | छणै ‘क रै | ||
+ | कालखण्ड ज्यूं। | ||
+ | जापायत री | ||
+ | जलम-पीड़ | ||
+ | लख ‘र | ||
+ | मधरी-मधरी | ||
+ | मुळकती बांझड़ | ||
+ | स्यात् नीं जाणै | ||
+ | जापै री पीड़ रै | ||
+ | पच्छै रो सुख। | ||
</poem> | </poem> |
03:10, 28 अक्टूबर 2016 का अवतरण
मुंडै छळकती ममता
हाँचल झबळकतौ हेत
आंख्यां रो उमाव
भरै साख,
सुरगळै सुख री
वै मूंधा खिण
अंवेरण नैं
पड़ जावै
जिनगाणीं कम
फगत अैक ‘ज
छणै ‘क रै
कालखण्ड ज्यूं।
जापायत री
जलम-पीड़
लख ‘र
मधरी-मधरी
मुळकती बांझड़
स्यात् नीं जाणै
जापै री पीड़ रै
पच्छै रो सुख।