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"स्वभाव / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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एक मूठा सूखा सरपत
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रास्ता रोके खड़ा
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जो परायी आग में कूदा
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वो सबसे बड़ा
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एक तिनका शीर्ष पर
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नदियाँ उबल जातीं
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शीतल बना रहता
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सूर्य  ताकत को दिखाकर
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एक अन्धेरा भी
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तब यही नन्हा दिया
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संकल्प का
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आलोक बन जाता
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जब अंधेरों के खिलाफ
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रोशनी की जंग होती है
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साथ देते हैं पतंगे भी
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तब आग से
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कोई नहीं डरता
 
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15:48, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

सूर्य को
तपना सुहाये
दरख़्तों को
ठंडा मिजाज
वेा तुम्हारा है स्वभाव
ये हमारा है

नर्म पत्ती
तेज धार
धूप की दाल नहीं गली
सिर उठाकर मुस्कराती
एक नन्हीं-सी कली
एक मूठा सूखा सरपत
सूर्य का
रास्ता रोके खड़ा
जो परायी आग में कूदा
वो सबसे बड़ा
एक तिनका शीर्ष पर

चिलचिलाती धूप में
नदियाँ उबल जातीं
एक छोटा-सा घड़ा
शीतल बना रहता
सूर्य ताकत को दिखाकर
डूब जाता है
एक अन्धेरा भी
पीछे छोड़ जाता है
तब यही नन्हा दिया
संकल्प का
आलोक बन जाता

जब अंधेरों के खिलाफ
रोशनी की जंग होती है
साथ देते हैं पतंगे भी
तब आग से
कोई नहीं डरता