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"नादान हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपनी कभी जु़बान | ||
+ | और आ गया इन्क़्लाब | ||
+ | ठहरे हुए इस पेड़ की | ||
+ | हरियालियों को देखों | ||
+ | ख़ुशबुओं को देखो | ||
+ | क्या पंख लग गये | ||
+ | भ्रम में जिन्हें दिखा | ||
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+ | आँखों में वो छिद्रों की वजह | ||
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+ | सेाचते रहे | ||
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+ | रफ़तार कम न हो | ||
+ | हवा अनुकूल हो न हो | ||
+ | रेत के कण जो | ||
+ | बड़े नाजुक मिज़ाज के | ||
+ | कभी उड़ गये | ||
+ | कभी जुड़ गये | ||
+ | सीखे नदी में जो | ||
+ | जलधार में बहना | ||
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18:03, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
नादान हैं जो सोचते
शोर बड़ी चीज़
खामोशियों ने एक
आवाज़ नहीं की
गूंगों ने नहीं खोली
अपनी कभी जु़बान
और आ गया इन्क़्लाब
ठहरे हुए इस पेड़ की
हरियालियों को देखों
ख़ुशबुओं को देखो
क्या पंख लग गये
भ्रम में जिन्हें दिखा
कि आसमान शुष्क है
आँखों में वो छिद्रों की वजह
ढूँढते रहे
पानी में
आग भी है कहीं
सेाचते रहे
रफ़तार कम न हो
हवा अनुकूल हो न हो
रेत के कण जो
बड़े नाजुक मिज़ाज के
कभी उड़ गये
कभी जुड़ गये
सीखे नदी में जो
जलधार में बहना