"चाटुकर /कालिदास शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कालिदास शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= कालिदास शर्मा | |रचनाकार= कालिदास शर्मा | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=सूक्तिसिन्धु (फेरि) / सम्पादित पुस्तक |
}} | }} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} |
22:46, 18 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
झलमल मुख-चन्द्र चाँदनीको
अघितिर आफनु कान्ति जानि फीको ।
मुखबिच मलिनू कलेटि पारी
राशि छन ई अब भागनै तयारी ।।१।।
कमल-दलसमान साफ गाला
शशिमुखि लाल गुलास रङ्ग-वाला ।
रतिपति अतिथीजीका इप्याला
कि त उनकै हुन चकिदार भाला ।।२।।
मुख पनि मन-भावनी बनाई
मृदुपदके गति सारिले छिपाई ।
मधुर मुखर पाउजेप लाई
स्वर सुरिलो गरि रङ्गमा चलाई ।।३।।
नगर अब विलम्ब जल्दि आऊ
म छु बिचरो अपराध माफ पाऊँ ।
यसरि त निठुरी नहौ पियारी !
रतिपति प्राण लिनै छ ये तयारी ।।४।।
नयन-शर तिखा विषालु छानी
भृकुटी-धनू खिचि कानसम्म तानी ।
रिसरित मकनै गरी निसान
बरु अब लौन पियारि ! जल्दि हान ।।५।।
मधुमय पतला ति लाल ओठ
भुलिकन हाय ! लिई ठूटो चुरोट ।
दिन दिन घुमने भये डुलाहा
तर तिमरै न म हूँ प्रिये ! दुलाहा ।।६।।
अमृतसरि मिठा मिठा अपार
प्रियतमका सुनि हद्य चाटुकार ।
हजुर सच रहेस यो करार
भनि मुसुकाइ समालि केशभार ।।७।।
तिलहरि कुच बीचमा डटेर
मन हरिलीन भनी अघी सरेर ।
अरक भरि भरी लई गिलास
प्रियकन चट्ट दिई बसीन पास ।।८।।
(*सूक्तिसिन्धु (फेरि), जगदम्बा प्रकाशन, २०२४)