भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं<BR>
 
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं<BR>
 
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं<BR><BR>
 
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं<BR><BR>
यूं तो हन्गामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क<BR>
+
यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क<BR>
 
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं<BR><BR>
 
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं<BR><BR>
मुद्दतें गुजरी हैं तेरी याद भी आई ना हमें<BR>
+
मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें<BR>
 
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं<BR><BR>
 
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं<BR><BR>
 
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर<BR>
 
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर<BR>
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में<BR>
 
दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में<BR>
 
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं<BR><BR>
 
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं<BR><BR>
बदगुमां होके मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे<BR>
+
बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे<BR>
 
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं<BR><BR>
 
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं<BR><BR>
शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख से जो<BR>
+
शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो<BR>
साफ़ कायल भी नहीं और साफ़ मुकरता भी नहीं<BR><BR>
+
साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं<BR><BR>
 
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त<BR>
 
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त<BR>
 
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं<BR><BR>
 
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं<BR><BR>
बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए वहशी का मकाम<BR>
+
बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम<BR>
 
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं<BR><BR>
 
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं<BR><BR>
मुंह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि फ़िराक<BR>
+
मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक"<BR>
 
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं<BR><BR>
 
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं<BR><BR>

15:18, 27 अगस्त 2009 का अवतरण

सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं

यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं

मुद्दतें गुजरी, तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं

ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है कि तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं

दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं

बदगुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त, जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं

शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख़ से जो
साफ़ कायल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं

मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं

बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं

मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते, कि "फ़िराक"
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं