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"क़ैदी / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर

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23:47, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

वे तीन थे

और जैसे किसी जेल में थे


भीतर थी एक संकरी-सी कोठरी

जिसके भीतर सिर्फ़ उनका ही संकरा-सा जीवन

और उनकी ही थोड़ी-सी साँसे थीं


एक संतरी की तरह टहलता था

दूसरा वार्डेन की तरह देता था हिदायतें

कविता के सख़्त क़ायदों के बारे में


तीसरे को

दोनों ऎसे देखते थे

जैसे देखा जाता है कोई क़ैदी ।