"चुनौती / विष्णु खरे" के अवतरणों में अंतर
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+ | सुबह घूमने जाने वाले मध्यवर्गीय सवर्ण पुरुषों में | ||
+ | हरिओम पुकारने की प्रथा है | ||
− | + | यदि यह लगभग स्वगत | |
− | + | और भगवान का नाम लेने की एकान्त विनम्रता से ही कहा जाता | |
− | + | तब भी एक बात थी | |
− | + | क्योंकि तब ऐसे घूमने वाले | |
− | और भगवान का लेने की एकान्त विनम्रता से ही कहा जाता | + | जो सुबह हरिओम नहीं कहना चाहते |
− | तब भी एक बात थी | + | शान्ति से अपने रास्ते पर जा रहे होते |
− | क्योंकि तब ऐसे घूमने वाले | + | |
− | जो सुबह हरिओम नहीं कहना चाहते | + | लेकिन ये हरिओम पुकारने वाले |
− | शान्ति से अपने रास्ते पर जा रहे होते | + | उसे ऐसी आवाज़ में कहते हैं |
− | लेकिन ये हरिओम पुकारने वाले | + | जैसे कहीं कोई हादसा वारदात या हमला हो गया हो |
− | उसे ऐसी आवाज़ में कहते हैं | + | उसमें एक भय, एक हौल पैदा करने वाली चुनौती रहती है |
− | जैसे कहीं कोई हादसा वारदात या हमला हो गया हो | + | दूसरों को देख वे उसे अतिरिक्त ज़ोर से उच्चारते हैं |
− | उसमें एक भय एक हौल पैदा करने वाली चुनौती रहती है | + | उन्हें इस तरह जाँचते हैं कि उसका उसी तरह उत्तर नहीं दोगे |
− | दूसरों को देख वे उसे अतिरिक्त ज़ोर से उच्चारते हैं | + | तो विरोधी अश्रद्धालु नास्तिक और राष्ट्रद्रोही तक समझे जाओगे |
− | + | इस तरह बाध्य किए जाने पर | |
− | तो विरोधी अश्रद्धालु नास्तिक और राष्ट्रद्रोही तक समझे जाओगे | + | अक्सर लोग अस्फुट स्वर में या उन्हीं की तरह ज़ोर से |
− | इस तरह बाध्य किए जाने पर | + | हरिओम कह देते हैं |
− | अक्सर लोग अस्फुट स्वर में या | + | शायद मज़ाक़ में भी ऐसा कह देते हों |
− | हरिओम कह देते हैं | + | |
− | शायद | + | हरिओम कहलवाने वाले उसे एक ऐसे स्वर में कहते हैं |
− | हरिओम कहलवाने वाले उसे एक ऐसे स्वर में कहते हैं | + | जो पहचाना-सा लगता है |
− | जो पहचाना-सा लगता है | + | |
− | एक सुबह उठकर | + | एक सुबह उठकर |
− | कोठी जाने वाले इस ज़िला मुख्यालय मार्ग पर | + | कोठी जाने वाले इस ज़िला मुख्यालय मार्ग पर |
− | मैं प्रयोग करना चाहता हूँ | + | मैं प्रयोग करना चाहता हूँ |
− | कि हरिओम के प्रत्युत्तर में सुपरिचित जैहिन्द कहूँ | + | कि हरिओम के प्रत्युत्तर में सुपरिचित जैहिन्द कहूँ |
− | या महात्मा गाँधी की जय या | + | या महात्मा गाँधी की जय या नेहरू ज़िन्दाबाद |
− | या जय भीम अथवा लेनिन अमर रहें | + | या जय भीम अथवा लेनिन अमर रहें |
− | + | — कोई इनमें से जानता भी होगा भीम या लेनिन को? — | |
− | या अपने इस उकसावे को उसके चरम पर ले जाकर | + | या अपने इस उकसावे को उसके चरम पर ले जाकर |
− | अस्सलाम अलैकुम या अल्लाहु अकबर बोल दूँ | + | अस्सलाम अलैकुम या अल्लाहु अकबर बोल दूँ |
− | तो क्या सहास मतभेद से लेकर | + | तो क्या सहास मतभेद से लेकर |
− | + | दँगे तक की कोई स्थिति पैदा हो जाएगी इतनी सुबह | |
− | कि इतने में किसी सुदूर मस्जिद का लाउडस्पीकर कुछ खरखराता है | + | कि इतने में किसी सुदूर मस्जिद का लाउडस्पीकर कुछ खरखराता है |
− | और शुरू होती है फ़ज्र की अज़ान | + | और शुरू होती है फ़ज्र की अज़ान |
− | और मैं कुछ चौंक कर पहचानता हूँ | + | और मैं कुछ चौंक कर पहचानता हूँ |
− | कि यह | + | कि यह जो मध्यवर्गीय सवर्ण हरिओम बोला जाता है |
− | वह | + | वह नमाज़ के वज़न पर है बरक्स |
− | शायद यह सिद्ध करने का अभ्यास हो रहा है | + | |
− | कि | + | शायद यह सिद्ध करने का अभ्यास हो रहा है |
− | फिर वह जो हरिओम पुकारता है उसी के स्वर अज़ान में छिपे हुए हैं | + | कि मुसलमानों से कहीं पहले उठता है हिन्दू ब्राह्म मुहूर्त के आसपास |
− | जैसे मस्जिद के नीचे मन्दिर | + | फिर वह जो हरिओम पुकारता है उसी के स्वर अज़ान में छिपे हुए हैं |
− | जैसे काबे के नीचे शिवलिंग | + | जैसे मस्जिद के नीचे मन्दिर |
− | गूँजती है अज़ान | + | जैसे काबे के नीचे शिवलिंग |
− | दो-तीन और मस्जिदों के अदृश्य लाउडस्पीकर | + | |
− | उसे एक लहराती हुई प्रतिध्वनि बना देते हैं | + | गूँजती है अज़ान |
− | मुल्क में कहाँ-कहाँ पढ़ी जा रही होगी नमाज़ इस | + | दो-तीन और मस्जिदों के अदृश्य लाउडस्पीकर |
− | कितने लाख कितने करोड़ जानू झुके होंगे सिजदे में | + | उसे एक लहराती हुई प्रतिध्वनि बना देते हैं |
− | कितने हाथ माँग रहे होंगे दुआ कितने मूक दिलों | + | मुल्क में कहाँ-कहाँ पढ़ी जा रही होगी नमाज़ इस वक़्त |
− | अल्लाह के अकबर | + | कितने लाख कितने करोड़ जानू झुके होंगे सिजदे में |
− | क्या हर गाँव- | + | कितने हाथ माँग रहे होंगे दुआ कितने मूक दिलों में उठ रही होगी सदा |
− | हरिओम जैसा कुछ गुँजाया जाता होगा | + | अल्लाह के अकबर होने की लेकिन |
− | सन्नाटा छा जाता है कुछ देर के | + | क्या हर गाँव-क़स्बे-शहर में उसके मुका़बिले इतने कम उत्साहियों द्वारा |
− | होशियार जानवर हैं कुत्ते वे उस पर नहीं भौंकते | + | हरिओम जैसा कुछ गुँजाया जाता होगा |
− | फिर जो हरिओम के नारे लगते हैं छिटपुट | + | |
− | उनमें और ज़्यादा कोशिश रहती है मुअज़्ज़िनों जैसी | + | सन्नाटा छा जाता है कुछ देर के लिए कोठी रोड पर अज़ान के बाद |
− | लेकिन उसमें एक होड़ एक खीझ एक हताशा-सी लगती है | + | होशियार जानवर हैं कुत्ते वे उस पर नहीं भौंकते |
− | जो एक | + | फिर जो हरिओम के नारे लगते हैं छिटपुट |
− | एक समान सामूहिक | + | उनमें और ज़्यादा कोशिश रहती है मुअज़्ज़िनों जैसी |
− | वैसे भी अब सूरज चढ़ आया है और उनके लौटने का | + | लेकिन उसमें एक होड़, एक खीझ, एक हताशा-सी लगती है |
− | लेकिन अभी से ही उनमें जो रंज़ीदगी और थकान सुनता हूँ | + | जो एक ज़बरदस्ती की ज़िद्दी अस्वाभाविक पावनतावादी चेष्टा को |
− | + | एक समान सामूहिक जीवन्त आस्था से बाँटती है | |
− | कि कहीं वे हरिओम कहने को अनिवार्य न बनवा डालें इस सड़क पर | + | वैसे भी अब सूरज चढ़ आया है और उनके लौटने का वक़्त है |
− | और फिर इस शहर में | + | |
− | और | + | लेकिन अभी से ही उनमें जो रंज़ीदगी और थकान सुनता हूँ |
+ | उस से डर पैदा होता है | ||
+ | कि कहीं वे हरिओम कहने को अनिवार्य न बनवा डालें इस सड़क पर | ||
+ | और फिर इस शहर में | ||
+ | और अन्त में इस मुल्क में | ||
+ | </poem> |
14:17, 20 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
इस क़स्बानुमा शहर की इस सड़क पर
सुबह घूमने जाने वाले मध्यवर्गीय सवर्ण पुरुषों में
हरिओम पुकारने की प्रथा है
यदि यह लगभग स्वगत
और भगवान का नाम लेने की एकान्त विनम्रता से ही कहा जाता
तब भी एक बात थी
क्योंकि तब ऐसे घूमने वाले
जो सुबह हरिओम नहीं कहना चाहते
शान्ति से अपने रास्ते पर जा रहे होते
लेकिन ये हरिओम पुकारने वाले
उसे ऐसी आवाज़ में कहते हैं
जैसे कहीं कोई हादसा वारदात या हमला हो गया हो
उसमें एक भय, एक हौल पैदा करने वाली चुनौती रहती है
दूसरों को देख वे उसे अतिरिक्त ज़ोर से उच्चारते हैं
उन्हें इस तरह जाँचते हैं कि उसका उसी तरह उत्तर नहीं दोगे
तो विरोधी अश्रद्धालु नास्तिक और राष्ट्रद्रोही तक समझे जाओगे
इस तरह बाध्य किए जाने पर
अक्सर लोग अस्फुट स्वर में या उन्हीं की तरह ज़ोर से
हरिओम कह देते हैं
शायद मज़ाक़ में भी ऐसा कह देते हों
हरिओम कहलवाने वाले उसे एक ऐसे स्वर में कहते हैं
जो पहचाना-सा लगता है
एक सुबह उठकर
कोठी जाने वाले इस ज़िला मुख्यालय मार्ग पर
मैं प्रयोग करना चाहता हूँ
कि हरिओम के प्रत्युत्तर में सुपरिचित जैहिन्द कहूँ
या महात्मा गाँधी की जय या नेहरू ज़िन्दाबाद
या जय भीम अथवा लेनिन अमर रहें
— कोई इनमें से जानता भी होगा भीम या लेनिन को? —
या अपने इस उकसावे को उसके चरम पर ले जाकर
अस्सलाम अलैकुम या अल्लाहु अकबर बोल दूँ
तो क्या सहास मतभेद से लेकर
दँगे तक की कोई स्थिति पैदा हो जाएगी इतनी सुबह
कि इतने में किसी सुदूर मस्जिद का लाउडस्पीकर कुछ खरखराता है
और शुरू होती है फ़ज्र की अज़ान
और मैं कुछ चौंक कर पहचानता हूँ
कि यह जो मध्यवर्गीय सवर्ण हरिओम बोला जाता है
वह नमाज़ के वज़न पर है बरक्स
शायद यह सिद्ध करने का अभ्यास हो रहा है
कि मुसलमानों से कहीं पहले उठता है हिन्दू ब्राह्म मुहूर्त के आसपास
फिर वह जो हरिओम पुकारता है उसी के स्वर अज़ान में छिपे हुए हैं
जैसे मस्जिद के नीचे मन्दिर
जैसे काबे के नीचे शिवलिंग
गूँजती है अज़ान
दो-तीन और मस्जिदों के अदृश्य लाउडस्पीकर
उसे एक लहराती हुई प्रतिध्वनि बना देते हैं
मुल्क में कहाँ-कहाँ पढ़ी जा रही होगी नमाज़ इस वक़्त
कितने लाख कितने करोड़ जानू झुके होंगे सिजदे में
कितने हाथ माँग रहे होंगे दुआ कितने मूक दिलों में उठ रही होगी सदा
अल्लाह के अकबर होने की लेकिन
क्या हर गाँव-क़स्बे-शहर में उसके मुका़बिले इतने कम उत्साहियों द्वारा
हरिओम जैसा कुछ गुँजाया जाता होगा
सन्नाटा छा जाता है कुछ देर के लिए कोठी रोड पर अज़ान के बाद
होशियार जानवर हैं कुत्ते वे उस पर नहीं भौंकते
फिर जो हरिओम के नारे लगते हैं छिटपुट
उनमें और ज़्यादा कोशिश रहती है मुअज़्ज़िनों जैसी
लेकिन उसमें एक होड़, एक खीझ, एक हताशा-सी लगती है
जो एक ज़बरदस्ती की ज़िद्दी अस्वाभाविक पावनतावादी चेष्टा को
एक समान सामूहिक जीवन्त आस्था से बाँटती है
वैसे भी अब सूरज चढ़ आया है और उनके लौटने का वक़्त है
लेकिन अभी से ही उनमें जो रंज़ीदगी और थकान सुनता हूँ
उस से डर पैदा होता है
कि कहीं वे हरिओम कहने को अनिवार्य न बनवा डालें इस सड़क पर
और फिर इस शहर में
और अन्त में इस मुल्क में