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"बेटी-तीन मुक्तक / माधवी चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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22:21, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण
बेटी के रूप में मुझे तन्हाईयाँ मिली।
अपनों से भी मुझे यहाँ रुस्वाइयाँ मिली।
इतना ही काफी था कि मुझे जन्म मिल गया-
लाखों सुताओं को जहाँ खामोशियाँ मिली।
बेटी को जन्म दीजिए, उर से लगाइए।
ममता की छाँव दीजिए, उसको पढ़ाइए।
बेटी भी फर्ज सारे खुशी से निभाएगी-
बेटी को सबल बेटों के जैसा बनाइए।
बागों में खिल रही जो वो कली हैं बेटियाँ।
कल वृक्ष जो बनेंगी वो फली हैं बेटियाँ।
बेटी के दान से बड़ा है पुण्य कुछ नहीं-
जो स्वर्ग को ले जाएँ वो गली हैं बेटियाँ।