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"भुजरियें / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
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नौ दिन देती है पानी | नौ दिन देती है पानी | ||
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उगती है धीरे-धीरे इच्छाओं की तरह | उगती है धीरे-धीरे इच्छाओं की तरह | ||
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एक-एक कर अनगिनत भुजरियें | एक-एक कर अनगिनत भुजरियें | ||
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एक-दूसरे पर बोझा डालतीं | एक-दूसरे पर बोझा डालतीं | ||
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झुकती हैं एक-दूसरे पर | झुकती हैं एक-दूसरे पर | ||
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माँ का दिया पानी चमकता है | माँ का दिया पानी चमकता है | ||
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बूंद-बूंद मोती की शक्ल में | बूंद-बूंद मोती की शक्ल में | ||
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रोती है माँ | रोती है माँ | ||
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मिट्टी से भरे दोनों में उगी भुजरियों को | मिट्टी से भरे दोनों में उगी भुजरियों को | ||
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करती है विदा भाई की साईकिल। | करती है विदा भाई की साईकिल। | ||
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रोता है भाई | रोता है भाई | ||
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रोते हैं हम सब साथ भुजरियों के | रोते हैं हम सब साथ भुजरियों के | ||
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ससुराल में बैठी बहनों को याद करके। | ससुराल में बैठी बहनों को याद करके। | ||
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11:21, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण
माँ
नौ दिन देती है पानी
मिट्टी से भरे दोनों में
उगती है धीरे-धीरे इच्छाओं की तरह
एक-एक कर अनगिनत भुजरियें
एक-दूसरे पर बोझा डालतीं
झुकती हैं एक-दूसरे पर
माँ का दिया पानी चमकता है
बूंद-बूंद मोती की शक्ल में
रोती है माँ
मिट्टी से भरे दोनों में उगी भुजरियों को
करती है विदा भाई की साईकिल।
रोता है भाई
रोते हैं हम सब साथ भुजरियों के
ससुराल में बैठी बहनों को याद करके।