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"मौत से ठन गई / अटल बिहारी वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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पार पाने का कायम मगर हौसला,<br>
 
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देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।<br><br>
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देख तेवर तूफाँ का, तेवरी तन गई।<br><br>
  
 
मौत से ठन गई।<br><br>
 
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17:02, 17 मई 2007 का अवतरण

लेखक: अटल बिहारी वाजपेयी

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ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेखबर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफान है,
नाव भँवरों की बाहों में मेहमान है।

पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।