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"रूप खजाना / नवीन ठाकुर ‘संधि’" के अवतरणों में अंतर

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एैलोॅ एक सँपेरा,  
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ओठोॅ में लाली, आँखी में काजर,  
लगैलकोॅ घूमी केॅ फेरा।
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कपारोॅ में बिन्दी, जेनां चमकै बादर।
वें बजैलकै देखोॅ वीण,  
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अंगूल दवायकेॅ वीण पेॅ एक, दू, तीन।
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कोय नै करलकै ओकरा अनचिन्ह,
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जुटलै बच्चा बूढ़ोॅ कमसीन।
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देलकै खोली सब्भेॅ पेटारा,  
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साँपोॅ-साँपोॅ में छै अन्तर,  
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रंग श्यामल लागै रूप खजाना,
करलकै काबू पढ़ी केॅ मंतर।
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कि कारण नै आबै छै पहुना।
बोली-बोली केॅ बेचै छै जंतर,  
+
भेलै बेकार रूप गुण खजाना,  
कहेॅ "संधि" सुनोॅ पुरेन्दर।
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बान्होॅ धीरज एैतेॅ हौ दिन जमाना।
येॅयेॅ काम छेकै सात दिन सबेरा,  
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कि दगियैलोॅ छौं तोरोॅ मलमल चादर,  
एैलोॅ एक सँपेरा।
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तोरोॅ दिल कठोर कि कोमल छौं?
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है मन चंचल तोरोॅ बताय छोॅ।
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तोरोॅ जवानी चढ़लोॅ छौं,
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दिल वैकरै पर गड़लोॅ छौं।
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बैठोॅ "संधि" आश लगाय उमड़तै सागर।
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आय तालूक कुछू नै होलोॅ छै समय रोॅ पहिलेॅ,  
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मुरखा आरो ज्ञानी केकरोॅ-केकरोॅ कहलेॅ।
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तड़पै छै तड़पाय छै सबनें भलेॅ,
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नै फँसोॅ-फँसावोॅ तोयँ दलदलें।
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समय जानि करीयोॅ तोहें आदर।
 
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18:20, 22 जून 2017 के समय का अवतरण

 ओठोॅ में लाली, आँखी में काजर,
 कपारोॅ में बिन्दी, जेनां चमकै बादर।

 रंग श्यामल लागै रूप खजाना,
 कि कारण नै आबै छै पहुना।
 भेलै बेकार रूप गुण खजाना,
 बान्होॅ धीरज एैतेॅ हौ दिन जमाना।
 कि दगियैलोॅ छौं तोरोॅ मलमल चादर,
 
 तोरोॅ दिल कठोर कि कोमल छौं?
 है मन चंचल तोरोॅ बताय छोॅ।
 तोरोॅ जवानी चढ़लोॅ छौं,
 दिल वैकरै पर गड़लोॅ छौं।
 बैठोॅ "संधि" आश लगाय उमड़तै सागर।
 
 आय तालूक कुछू नै होलोॅ छै समय रोॅ पहिलेॅ,
 मुरखा आरो ज्ञानी केकरोॅ-केकरोॅ कहलेॅ।
 तड़पै छै तड़पाय छै सबनें भलेॅ,
 नै फँसोॅ-फँसावोॅ तोयँ दलदलें।
 समय जानि करीयोॅ तोहें आदर।