भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार= नामवर सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>
पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
 चांद चाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल क्या पता था, किंतुकिन्तु, प्यासे को मिलेंगे आज दूर ओठों से, दृगों में संपुटित दो नाल।नाल ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits