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"मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है | + | मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी |
मेरे दामन से लिपटकर मुस्कराती है ग़रीबी। | मेरे दामन से लिपटकर मुस्कराती है ग़रीबी। | ||
− | भूख में भी, प्यास में भी गुनगुनाते,गीत गाते | + | भूख में भी, प्यास में भी गुनगुनाते,गीत गाते |
दो टके पर चार पुरसा कूद जाती है ग़रीबी। | दो टके पर चार पुरसा कूद जाती है ग़रीबी। | ||
− | थाम ले इक बार दामन तो कहाँ फिर छोड़ती है | + | थाम ले इक बार दामन तो कहाँ फिर छोड़ती है |
ख़ानदानी है, वफ़ादारी निभाती है ग़रीबी। | ख़ानदानी है, वफ़ादारी निभाती है ग़रीबी। | ||
− | वो अँधेरी रात पूरे हौसले से कट गयी | + | वो अँधेरी रात पूरे हौसले से कट गयी |
एक बीड़ी, चिलम से भी हार जाती है ग़रीबी। | एक बीड़ी, चिलम से भी हार जाती है ग़रीबी। | ||
− | पेट भरने का ग़रीबी रास्ता सब जानती है | + | पेट भरने का ग़रीबी रास्ता सब जानती है |
दाल कम पड़ती है तो पानी बढ़ाती है ग़रीबी। | दाल कम पड़ती है तो पानी बढ़ाती है ग़रीबी। | ||
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17:15, 23 अगस्त 2017 का अवतरण
मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी
मेरे दामन से लिपटकर मुस्कराती है ग़रीबी।
भूख में भी, प्यास में भी गुनगुनाते,गीत गाते
दो टके पर चार पुरसा कूद जाती है ग़रीबी।
थाम ले इक बार दामन तो कहाँ फिर छोड़ती है
ख़ानदानी है, वफ़ादारी निभाती है ग़रीबी।
वो अँधेरी रात पूरे हौसले से कट गयी
एक बीड़ी, चिलम से भी हार जाती है ग़रीबी।
पेट भरने का ग़रीबी रास्ता सब जानती है
दाल कम पड़ती है तो पानी बढ़ाती है ग़रीबी।