Changes

<poem>
यह लगभग तय था कि वह पागल है
उसका तार-तार हुलिया उलझे हुए बाल गुस्सैल ग़ुस्सैल चेहरा
उसकी पहचान तय करने के लिए काफ़ी थे
लेकिन यह समझना मुश्किल था कि उसके साथ क्या हुआ है
वह नुक्कड़ पर उस दूकान के सामने खड़ी हो गई थी
जहाँ सुबह-सुबह आसपास की झोपडिय़ों झोपड़ियों के ग़रीब बच्चे
बहुराष्ट्रीय निगमों के चिप्स के पैकेट ख़रीदने आते हैं
उस औरत के पीछे कुछ आवारा कुत्ते
वह पगली कुछ देर बाद चली गई बिना कुछ लिए हुए
हम लोग जान नहीं पाए
इस संसार में आखिर आख़िर क्या था उसका संसार
सिवा इसके कि वह अपने पागलपन को बचाए रखना चाहती थी
लेकिन उसके क्रुद्ध शब्द भारी पत्थरों की तरह आपपास आस पास छूट गए
उसके दुर्बोध शाप चीलों की तरह हमारे ऊपर पर मण्डराने लगे
यह तय नहीं हो पाया आखिर वह कहाँ की रही होगी
Mover, Reupload, Uploader
3,967
edits