"काठमाण्डूप्रति / सीमा आभास" के अवतरणों में अंतर
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| − | हेर्दैन | + | आफूमाथिको आकास हेर्छ, टेकेको जमिन हेर्दैन | 
| − | विक्षिप्त हुन्छ र | + | विक्षिप्त हुन्छ र काठमाण्डूको नाकैमा उभिएर   | 
| − | + | गर्छ सत्तो सराप । | |
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| + | यहाँका अनगिन्ती साँघुरा गल्लीभन्दा पनि असरल्ल  | ||
| + | आफ्नै सपनाका खोचमा चेपिएपछि  | ||
| + | काठमाण्डुकै छातीमाथि पलेँटी कसेर | ||
| + | कुख्यात अपराधीलाई झैँ   | ||
| + | काठमाण्डुलाई नै गाली गर्छ नव–काठमाण्डू । | ||
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| + | आँखीझ्यालबाट ब्यूँझने सूर्योदयसँगै | ||
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| + | गजक्क पर्दै स्वयंभूबाट गुन्गुनाउँछ ओम मेने पेमे हुँ | ||
| + | पशुपतिबाट शंखघण्ट बजाउँदै सुनाउँछ आफ्नो स्वर । | ||
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| + | काठमाण्डुलाई थाहा छ | ||
| + | देवताकै शहरमा हो राक्षसहरु हुर्कने | ||
| + | देवतालाई नै हो सैतानले दुःख दिने । | ||
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| + | काखभरि सन्तान बोकेकी आमाले जस्तै | ||
| + | छातीभरि जिउँदा देउदेउता बोकिरह्यो  | ||
| + | जसरी बास दियो साराका सारालाई | ||
| + | कसैकोमा एकसाँझ बास माग्न सकेन काठमाण्डुले । | ||
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| + | टाउकोमा मुड्कीले ठोके पनि चुप लाग्छ | ||
| + | घनले फुटाउन खोजे पनि बज्र बन्छ | ||
| + | काखैमा कुल्चिदा पनि सहिरहन्छ । | ||
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| + | काठमाण्डूले अब त आँखा खोले हुने ! | ||
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| + | उन्मत्त भैरबलाई नचाएर  | ||
| + | कलिलाई जमिनबाट तत्काल निकालेर  | ||
| + | हजार मन्दिरबाट देवदेवीलाई खूल्ला मैदानमा डाकेर  | ||
| + | काठमाण्डूले अकाट्य प्रतिउत्तर बोले हुने ! | ||
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| + | निलगिरीको थाप्लो हेरेर आफूलाई पुड्को देख्नेहरुलाई सम्झाइदिए हुने ! | ||
| + | नव काठमाण्डुको गालीले भत्किँदैन काठमाण्डू  | ||
| + | पराजित नव काठमाण्डुहरुलाई बुझाइदिए हुने  ! | ||
| + | काठमाण्डूको काँध चढ्दैमा काठमाण्डू बन्न सक्तैन मान्छे । | ||
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| + | यो पनि बुझाइदिए हुने ! | ||
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| + | यो भूमिको एउटा पवित्र शिर पनि हो । | ||
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11:44, 28 अप्रैल 2020 का अवतरण
काठमाण्डू छिरेपछि स्वंय काठमाण्डू बन्न खोज्छ मान्छे ।
 	
चोभार थुनेर पौडिन खोज्छ, सक्तैन
महाराज बन्न खोज्छ, बन्दैन 
मन्दिर देखेपिच्छे देवता हुन खोज्छ, हुँदैन
आफूमाथिको आकास हेर्छ, टेकेको जमिन हेर्दैन
विक्षिप्त हुन्छ र काठमाण्डूको नाकैमा उभिएर 
गर्छ सत्तो सराप ।
आफ्नो उचाइ नाप्छ धराहरासँग 
रानीपोखरीमा आफ्नो गहिराई खोज्छ 
यहाँका अनगिन्ती साँघुरा गल्लीभन्दा पनि असरल्ल 
आफ्नै सपनाका खोचमा चेपिएपछि 
काठमाण्डुकै छातीमाथि पलेँटी कसेर
कुख्यात अपराधीलाई झैँ  
काठमाण्डुलाई नै गाली गर्छ नव–काठमाण्डू ।
काठमाण्डू 
आँखीझ्यालबाट ब्यूँझने सूर्योदयसँगै
आफूलाई चियाउँछ
गल्लीभरि देउदेउता हिँडेको देखेपछि
गजक्क पर्दै स्वयंभूबाट गुन्गुनाउँछ ओम मेने पेमे हुँ
पशुपतिबाट शंखघण्ट बजाउँदै सुनाउँछ आफ्नो स्वर ।
काठमाण्डुलाई थाहा छ
देवताकै शहरमा हो राक्षसहरु हुर्कने
देवतालाई नै हो सैतानले दुःख दिने ।
काखभरि सन्तान बोकेकी आमाले जस्तै
छातीभरि जिउँदा देउदेउता बोकिरह्यो 
जसरी बास दियो साराका सारालाई
कसैकोमा एकसाँझ बास माग्न सकेन काठमाण्डुले ।
टाउकोमा मुड्कीले ठोके पनि चुप लाग्छ
घनले फुटाउन खोजे पनि बज्र बन्छ
काखैमा कुल्चिदा पनि सहिरहन्छ ।
काठमाण्डूले अब त आँखा खोले हुने !
बूढानिलकण्ठलाई उभ्याएर 
बिरुपाक्षलाई हिडाएर 
उन्मत्त भैरबलाई नचाएर 
कलिलाई जमिनबाट तत्काल निकालेर 
हजार मन्दिरबाट देवदेवीलाई खूल्ला मैदानमा डाकेर 
काठमाण्डूले अकाट्य प्रतिउत्तर बोले हुने !
निलगिरीको थाप्लो हेरेर आफूलाई पुड्को देख्नेहरुलाई सम्झाइदिए हुने !
नव काठमाण्डुको गालीले भत्किँदैन काठमाण्डू 
पराजित नव काठमाण्डुहरुलाई बुझाइदिए हुने  !
काठमाण्डूको काँध चढ्दैमा काठमाण्डू बन्न सक्तैन मान्छे ।
यो पनि बुझाइदिए हुने !
काठमाण्डू 
यो भूमिको एउटा पवित्र शिर पनि हो ।
 
	
	

