Changes

गाओ दुख का महागीत/ ब्रजमोहन

18 bytes removed, 07:58, 16 अक्टूबर 2017
ओ जन-जन की पीड़ा मिलकर गाओ दुख का महागीत...
अम्बर ढहकर गिर जाए तुम्हारे पाँव में जल जाए झुलसकर धूप तुम्हारी छाँव में अपनी गरमी से भर जाए तुमको सूरज
जलने दो लाखों दिये दिलों के, रात्रि हो भयभीत...
लहराए उफ़नकर नदी रक्त की लहराए गाए श्रम के ओंठों पर जीवन मुस्काए उड़ने दो स्वर को आसमान छूने दो
हर दिशा गूँजने लगे, खाए पलटा अतीत...
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,277
edits