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"वो दिन लौटा भी लाते / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर
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लौटा भी लाते | लौटा भी लाते | ||
− | मीठे | + | मीठे लफ़्ज़ों मे गूँथी कहानियाँ |
जब, निगल जाती थी आँखें | जब, निगल जाती थी आँखें | ||
− | + | शहज़ादों परियों की कहानियाँ | |
स्वप्निल आसमान | स्वप्निल आसमान | ||
लोबान सी महकती ज़मी | लोबान सी महकती ज़मी | ||
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आँखें आँखों से कतराने लगी हैं | आँखें आँखों से कतराने लगी हैं | ||
आँखें उगल देना चाहती हैं एक समंदर | आँखें उगल देना चाहती हैं एक समंदर | ||
− | क़िस्से, कहानियाँ, | + | क़िस्से, कहानियाँ, लफ्ज़ सारे |
वो दिन | वो दिन | ||
− | लौटा भी लाते | + | लौटा भी लाते. |
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13:25, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
वो दिन
लौटा भी लाते
मीठे लफ़्ज़ों मे गूँथी कहानियाँ
जब, निगल जाती थी आँखें
शहज़ादों परियों की कहानियाँ
स्वप्निल आसमान
लोबान सी महकती ज़मी
कौंधते जुगनू
एक सच गढ़ती कहानियाँ
जिनमे हक़ीक़त की बू तक नहीं थी
आँखों ने फिर पढ़ी
उम्र की दहलीज़ पर
कई-कई आँखें
इन दिनों
आँखें आँखों से कतराने लगी हैं
आँखें उगल देना चाहती हैं एक समंदर
क़िस्से, कहानियाँ, लफ्ज़ सारे
वो दिन
लौटा भी लाते.