भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चंद्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
बांसुरी के रंध्रों से
+
बाँसुरी के रंध्रों से
 
बहने दो स्वर
 
बहने दो स्वर
 
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
 
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
कृष्ण !
 
कृष्ण !
 
बचा, रचा-बसा
 
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमे, केवल
+
रहने दो मुझमें, केवल
तन्मय धुन का उत्सव
+
तन्मय धुन का उत्सव.
  
 
</poem>
 
</poem>

13:26, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

बाँसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से

कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमें, केवल
तन्मय धुन का उत्सव.