|रचनाकार=उदयप्रकाश
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धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।
धन्य प्रिया तुम जागींजीवन नदिया,<br>बैरी केवट, पार न कोई अपना ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं। <br><br>घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना । क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अंसुअन पागी ।
जीवन नदियादाना-पानी, बैरी केवटठौर ठिकाना, पार न कोई कहां बसेरा अपना<br>घाट परायानिस दिन चलना, देस बिराना, हाटपल-बाट सब सपना पल जलना, नींद भई इक छलना ।<br>क्या मन कीपाखी रूंख न पाएं, क्या तन अंखियां बरस-बरस की, किहनी अपनी अंसुअन पागी जागी ।<br><br>
दाना-पानीप्रेम न सांचा, ठौर ठिकानाशपथ न सांचा, कहां बसेरा अपना<br>सांच न संग हमारा निस दिन चलनाएक सांस का जीवन सारा, पल-पल जलना, नींद भई इक छलना बिरथा का चौबारा ।<br>पाखी रूंख न पाएं, अंखियां बरसजीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-बरस जनम की जागी लागीं ।<br><br>
प्रेम न सांचा, शपथ न सांचा, सांच न संग हमारा<br>एक सांस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा ।<br>जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं ।<br><br> धन्य प्रिया तुम जागीं,<br>ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं ।<br/poem>