"देवता दुखी हैं / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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22:25, 26 जून 2008 के समय का अवतरण
दुखी हैं देवता
कि मनुपुत्र लगातार
आदमी होते जा रहे हैं
कोई मौक़ा ही नहीं दे रहे
अवतार का
युग बीता
जब कामी और उदंड
ब्रह्म-हत्यारों की
सोमरस से अर्चना करते-करते
थक जाता था वह... यहाँ तक कि
आसन मार-आँखें मूंद
बैठे-बैठे मुनी हो जाता था
अब तो तैंतीस के नाम भी
याद नहीं उसको
जबकि आदमियों के नाम
उसकी जबान पर रहते हैं
चन्द्रगुप्त, सिकन्दर, नेपोलियन, अशोक, अकबर,
शिवाजी, टीपू, सीजर, क्लियोपेट्रा, होमर, पूश्किन
तुलसी, रैदास, थोरो, तालस्तोय, टैगोर, गांधी, लेनिन, माओ,
मर्लिन, चैप्लिन, नेहरू, सुभाष...
देवता दुखी हैं कि ये
अवतार के जन्मस्थल का
फ़ैसला करने में ही
युग लगा दे रहे
एक मन्दिर का ठेका दिया आदमी को
तो उसके नाम की ईंटें उसने
अपने घर में चिनवा दीं
मन्दिर के चन्दे से दंगे करवा दिए
और चुनाव जीत
अपने बनाए स्वर्ग में
अपनी सीट पक्की करा ली
देवता दुखी हैं
कि परम्परा और चन्दन-टीका के नाम पर
चन्दा कर चुनाव जीतने वाले ये ठेकेदार
कालिदास की तरह
दो अंगुलियां दिखा-दिखाकर
विकट-अरि, विकट-अरि चिल्लाते हैं
देवता दुखी हैं कि स्वर्गलोक में
रसद कम पड़ गई है
सारा पैसा ठेकेदारों को दे देने के बाद
उनका स्वर्ग
गोलकोंडा का किला रह गया है
और इससे पहले कि ये उसे
पर्यटनस्थल घोषित कर दें डालर के लिए
देवता विचार कर रहे हैं
कि अब विचरना छोड़
सीधी कार्रवाई पर उतरें
और शरण लें पूर्व की तरह
किसी मानवी के गर्भ में
और स्वर्ग के पुनर्जीवन की जगह
विवेकानन्द-जोतिबा-भगतसिंह की तरह
इस धरती को ही स्वर्ग बनाने को
कुछ करें... कुछ करें
और नहीं तो
शहादत ही दे मरें।