"गंगा / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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13:47, 25 दिसम्बर 2017 का अवतरण
वेदों में भी है लिखा, गंगा का गुणगान।
कट जाते हैं पाप सब, कर गंगा स्नान॥
गंगा गरिमा हिन्द की, देवों का वरदान।
होता है जीवन सफल, कर इसका जल पान॥
विष्णुपदी भागीरथी, माँ गंगा का नाम।
इसके घाटों पर बसे, सारे पावन धाम॥
गोमुख से बंगाल तक, गंगा का विस्तार।
जगत तारिणी भी इन्हें, कहता है संसार॥
गंगाजल अद्भुत बड़ा, पड़ें नहीं कीटाणु।
औषधि गुण से युक्त है, मारे ये रोगाणु॥
तप भागीरथ ने किया, आई भू पर गंग।
सगर पुत्र सब तर गए, छू माता का अंग॥
चली बहुत-सी योजना, हुआ बहुत ही नाम।
गंगा दूषित ही रही, हुआ कागजी काम॥
पंचामृत में एक है, पावन गंगा नीर।
भवसागर से तारता, हरता मन की पीर॥
हर-हर गंगे मंत्र का, करता जो जयघोष।
उनके जीवन में सदा, रहता सुख, संतोष॥
उत्तर भारत को मिला, गंगा का वरदान।
फसलों को माँ सींचती, भरती भू में प्राण॥