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"अश्रु कणिका / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारे नकारने से
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अश्रु कणिका
मेरे अस्तित्व में
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तुम हर्षित मन से
कमी नहीं आयेगी
+
भाव सुनहले
कमी नहीं आयेगी
+
स्वर्णिम कण से
मेरा सूक्ष्म भी तो
+
अनगिनत गहरे
परमात्मा के सान्ध्यि में
+
बिम्ब लिये चरसे
पल रहा है
+
गिरती हो !
छोटे-छोटे अणुओं से
+
तापित ह्रदय से
निर्माण हुआ मेरे स्थूल का
+
मानो बूंद-बूंद घट से
तुमने गौर से कब देखा
+
चेतना के चिर शिखर पर
मुझ शुद्र को
+
संवेदना की संवाहिका बन
तुम्हारी नजरों में
+
बहती हो
अये घृणा की बेला
+
तुम कब पाहन से निकसी
सूक्ष्म स्थूल कारण से परे
+
गरलराज संग राची
अस्तित्व को देखो
+
हो मेघों का गर्जन जब
मेरे और तुम्हारे मध्य
+
तब पृथ्वी के तृण-तृण का सृजन।
अंतराल को महसूस करो
+
हरियाली मंडाराती
अवलोकन तो करो
+
मूक नहीं कोयल रह पाती
सत्य का।
+
मयूरा नित्य राग आलपे
 +
नूत्य नूतन कर पाते
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सुख गागर भी तब सागर बन जाते
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अश्रुकणिका पाया तुम से स्नेह अपार।
 
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15:35, 27 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

अश्रु कणिका
तुम हर्षित मन से
भाव सुनहले
स्वर्णिम कण से
अनगिनत गहरे
बिम्ब लिये चरसे
गिरती हो !
तापित ह्रदय से
मानो बूंद-बूंद घट से
चेतना के चिर शिखर पर
संवेदना की संवाहिका बन
बहती हो
तुम कब पाहन से निकसी
गरलराज संग राची
हो मेघों का गर्जन जब
तब पृथ्वी के तृण-तृण का सृजन।
हरियाली मंडाराती
मूक नहीं कोयल रह पाती
मयूरा नित्य राग आलपे
नूत्य नूतन कर पाते
सुख गागर भी तब सागर बन जाते
अश्रुकणिका पाया तुम से स्नेह अपार।