भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंतत: / सुकेश साहनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
उसने जला डाला | उसने जला डाला | ||
− | मेरा | + | मेरा घास-फूस का घर |
पर नहीं जला पाया | पर नहीं जला पाया | ||
पैरों तले की धरती | पैरों तले की धरती | ||
और | और | ||
सिर पर का आसमान | सिर पर का आसमान | ||
− | |||
उसने लगवा दिए ताले | उसने लगवा दिए ताले | ||
मेरे होठों पर | मेरे होठों पर | ||
पर नहीं रोक सका मेरे | पर नहीं रोक सका मेरे | ||
रोम छिद्रों से बहता पसीना | रोम छिद्रों से बहता पसीना | ||
− | + | झल्लाकर | |
− | झल्लाकर | + | |
उसने काट डाले मेरे | उसने काट डाले मेरे | ||
हाथ और पैर | हाथ और पैर | ||
फिर भी डोलता रहा आसन | फिर भी डोलता रहा आसन | ||
मेरे दिल की धड़कनों से | मेरे दिल की धड़कनों से | ||
+ | अन्ततः | ||
+ | उसने झोंक दिया मुझको | ||
+ | बिजली की भट्ठी में | ||
+ | पर नहीं छीन सका मुझसे | ||
+ | अंसख्य-असंख्य माँओं की कोखें | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
03:57, 29 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
उसने जला डाला
मेरा घास-फूस का घर
पर नहीं जला पाया
पैरों तले की धरती
और
सिर पर का आसमान
उसने लगवा दिए ताले
मेरे होठों पर
पर नहीं रोक सका मेरे
रोम छिद्रों से बहता पसीना
झल्लाकर
उसने काट डाले मेरे
हाथ और पैर
फिर भी डोलता रहा आसन
मेरे दिल की धड़कनों से
अन्ततः
उसने झोंक दिया मुझको
बिजली की भट्ठी में
पर नहीं छीन सका मुझसे
अंसख्य-असंख्य माँओं की कोखें