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तुम्हें नींद आने को होती | तुम्हें नींद आने को होती | ||
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कि चूम लेता मैं | कि चूम लेता मैं | ||
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और मुझे पास खींचती | और मुझे पास खींचती |
17:17, 28 जून 2008 के समय का अवतरण
उफ़ कितनी गरमी है आजकल
तुम होतीं तो पसीना पोंछती कहतीं
कितनी गरमी है-- उफ़
नहा लेते फिर तो अच्छा होता
मैं कहता
अच्छा होता कि हम
अलग बिस्तरों पर सोते आज
तब तुम मेरे सिर या छाती पर
छलक आया पसीना पोछतीं
फिर चूम लेतीं
नाराज़ होता मैं
कि कितनी गरमी है आज
और बाँहों में उठा
पास के बिस्तर पर लिटा देता
फिर बैठ जाता पास ही
कि अब सोओ तुम
मैं पंखा झल दूँ
तुम्हें नींद आने को होती
कि चूम लेता मैं
नाराज़ होतीं तुम
और मुझे पास खींचती
कहतीं
जाओ सोओ ना।