भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रणामांजलि / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: प्रणमाँजलि [ राग : केदार ] माँ सरस्वती सदा कृपा हम पर कीजिये, गिरुजनोँ के प...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | माँ सरस्वती सदा कृपा हम पर कीजिये, | + | {{KKRachna |
− | गिरुजनोँ के प्रति विनीत होँ, आषिश हमको दीजिये ! | + | |रचनाकार=लावण्या शाह |
− | भूल हरेक भेद ~ भाव, स्नेह से बँध कर रहेँ, | + | }} |
− | जाति ~ पाति, भेद ~ भाँर्ति, दूर कर सकेँ, | + | |
− | प्रेम के ही पँथ पर सब के पग पडेँ | + | राग : केदार |
− | माँ सरस्वती सदा | + | |
− | सूर्य ~ सा प्रकाश मन मेँ , फैल कर बढे, | + | माँ सरस्वती सदा कृपा हम पर कीजिये,<br> |
− | नित रुचिर, नित नवीन, आलोक से भरेँ, | + | गिरुजनोँ के प्रति विनीत होँ, आषिश हमको दीजिये !<br> |
− | स्वर्ग भूमि पर सदा, स्थापित हम करेँ ! | + | भूल हरेक भेद ~ भाव, स्नेह से बँध कर रहेँ,<br> |
− | माँ सरस्वती सदा. | + | जाति ~ पाति, भेद ~ भाँर्ति, दूर कर सकेँ,<br> |
− | विनय , शाँति, सौम्य द्रिष्टि, जीवन मेँ रखेँ, | + | प्रेम के ही पँथ पर सब के पग पडेँ <br> |
− | हो प्रतीति विश्व की, ज्ञान दिपती से, | + | माँ सरस्वती सदा<br> |
+ | सूर्य ~ सा प्रकाश मन मेँ , फैल कर बढे,<br> | ||
+ | नित रुचिर, नित नवीन, आलोक से भरेँ,<br> | ||
+ | स्वर्ग भूमि पर सदा, स्थापित हम करेँ !<br> | ||
+ | माँ सरस्वती सदा.<br> | ||
+ | विनय , शाँति, सौम्य द्रिष्टि, जीवन मेँ रखेँ,<br> | ||
+ | हो प्रतीति विश्व की, ज्ञान दिपती से,<br> | ||
सर्व ~ मँगल भावना, ह्रदय मेँ बसे ! | सर्व ~ मँगल भावना, ह्रदय मेँ बसे ! |
23:55, 28 जून 2008 का अवतरण
राग : केदार
माँ सरस्वती सदा कृपा हम पर कीजिये,
गिरुजनोँ के प्रति विनीत होँ, आषिश हमको दीजिये !
भूल हरेक भेद ~ भाव, स्नेह से बँध कर रहेँ,
जाति ~ पाति, भेद ~ भाँर्ति, दूर कर सकेँ,
प्रेम के ही पँथ पर सब के पग पडेँ
माँ सरस्वती सदा
सूर्य ~ सा प्रकाश मन मेँ , फैल कर बढे,
नित रुचिर, नित नवीन, आलोक से भरेँ,
स्वर्ग भूमि पर सदा, स्थापित हम करेँ !
माँ सरस्वती सदा.
विनय , शाँति, सौम्य द्रिष्टि, जीवन मेँ रखेँ,
हो प्रतीति विश्व की, ज्ञान दिपती से,
सर्व ~ मँगल भावना, ह्रदय मेँ बसे !