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"जाओ बादल / ज्ञान प्रकाश आकुल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | उसके ऊपर निष्प्रभाव है | |
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− | + | मरुथल जाकर बादल होना। | |
− | + | द्वार सफलता | |
− | + | का उसके हित खुला रहा है। | |
− | + | फिर भी मेरी एक विनय है | |
− | + | अतिवादी होने से बचना, | |
− | + | सम्यक् वृष्टि चाहिए इस को | |
− | + | जटिल धरा की है संरचना । | |
− | + | उसे जगाना | |
− | + | ताप जिसे भी सुला रहा है। | |
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22:25, 1 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
जाओ बादल,
तुम्हें मरुस्थल बुला रहा है।
वेणुवनों की वल्लरियाँ अब
पुष्पित होना चाह रहीं हैं,
थकी स्पृहायें शीतलता में
जी भर सोना चाह रहीं हैं।
स्वप्न तुम्हारा
कब से झूला झुला रहा है।
उसके ऊपर निष्प्रभाव है
दुनिया भर का जादू टोना,
जिसने भी चाहा जीवन में
मरुथल जाकर बादल होना।
द्वार सफलता
का उसके हित खुला रहा है।
फिर भी मेरी एक विनय है
अतिवादी होने से बचना,
सम्यक् वृष्टि चाहिए इस को
जटिल धरा की है संरचना ।
उसे जगाना
ताप जिसे भी सुला रहा है।