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"ओस की बूँद (हाइकु) / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

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18:11, 9 फ़रवरी 2018 का अवतरण

( हाइकु )

1

नदी बनाता

सोख हवा से नमीं

वृद्ध पहाड़।

2

छीन लेता है

धनी मेघों से जल

दानी पहाड़

3

अनाम गंध

बिखेर रही हवा

धान के खेत।

4

ओस की बूँद

कैक्टस पर बैठी

शूली पर सन्त।

5

छिड़ा जो युद्ध

रोयेगी मानवता

हँसेंगे गिद्ध।

6

बिना धूरी की

चल रही है चक्की

पिसेंगे सब।

7

गंध के बोरे

लाता है ढो ढोकर

हवा का घोड़ा।

8

धूप में तपा

पा गया सुर्ख रंग

टीले का टेसू।

9

चीखता रहा

झील पार चकोर

निर्मोही चाँद।

10

उगने लगे

कंकरीट के वन

उदास मन।