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"ओ घन श्याम ! / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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('ओ घन श्याम ! मुदित अभिराम सजल हुए धरा पर बरसे और कभी य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
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ओ घन श्याम !
 
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मुदित अभिराम
 
मुदित अभिराम
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हमें न भरमाओ
 
अब मान भी जाओ ...!!
 
अब मान भी जाओ ...!!
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15:38, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

ओ घन श्याम !
मुदित अभिराम
सजल हुए
धरा पर बरसे
और कभी यूँ
मिलने को तरसे ।
कौन सिखाता
सारी तुम्हें ठिठोली ?
सखी तुम्हारी
पुरवाई क्या बोली ?
भटकाती है
संग तुमको लेके
भला कहो तो
कित- कित है जाती
ज़रा तो जानो ।
कण -कण व्याकुल
तुम्हारे बिना
तुम न पहचानो ।
और कभी ये
मुक्त भाव से भला
कौन संदेसा
नदिया से कहते ?
उमड़ी जाती
वो बहते -बहते
सखा हमारे
हमें न भरमाओ
अब मान भी जाओ ...!!