रेंगते रहते हैं मस्तिष्क में<br>
नींद और जागरण की धुंधली दुनिया में<br>
फंसा फँसा मैं<br>
रच नहीं पाता कविता<br><br>
पक्षियों की कतार<br>
आसमान में गुजरती गुज़रती जाती है<br>
और चांद <br>
यूं यूँ ही ताकता रहता है धरती को<br>
और दोस्त<br>
लिखते रहते हैं कविता<br>
मेरे अधूरे सपनों में<br>
सड़े पानी सी <br>
गंधाती रहती हैं स्मृतियांस्मृतियाँ<br>
भाप उठती रहती है <br><br>
भी नहीं खड़कता<br>
जैसे पृथ्वी अचानक भूल गयी हो घूमना<br>
जैसे दुनयिां दुनिया में किसी भूकंप<br>
किसी ज्वालामुखी के फटने<br>
किसी समंदर के उफनने <br>
कुछ तो हिले बदले कुछ<br><br>
चिचियाते पंक्ष्ी पक्षी बदलते जाते हैं<br>
इंसानों में<br>
सूरज का रंक्तिम लाल रंग<br>
फैलता जाता है आसमानों में चारो ओर<br>
पर कलियां कलियाँ <br>
गुस्से में बंद हों जैसे और<br>
फूलों में तब्दीली से इनकार हो उन्हें...<br>