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"पहाड़ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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नदी की तरह | नदी की तरह | ||
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09:07, 1 अगस्त 2008 का अवतरण
गुरूत्वाकर्षण तो धरती में है फिर क्यों खींचते हैं पहाड़ जिसे देखो उधर ही भागा जा रहा है
बादल पहाडों को भागते हैं चाहे बरस जाना पडे टकराकर हवा पहाड़ को जाती है टकराती है ओर मुड जाती है सूरज सबसे पहले पहाड़ छूता है भेदना चाहता है उसका अंधेरा चांदनी वहीं विराजती है पड जाती है धूमिल
पर पेडों को देखे कैसे चढे जा रहे जमे जा रहे जाकर
चढ तो कोई भी सकता है पहाड पर टिकता वही है जिसकी जडें हो गहरी
बादलों की तरह उडकर जाओगे पहाड तक
तो नदी की तरह उतार देंगे पहाड हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर ।