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"तुम कब आओगी / रंजन कुमार झा" के अवतरणों में अंतर
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'आ जाऊंगी जल्दी ही' तुम गयी यही कहकर | 'आ जाऊंगी जल्दी ही' तुम गयी यही कहकर | ||
पल वह नहीं बिसारा करता | पल वह नहीं बिसारा करता | ||
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तम में रहने दे कुछ पल, प्रिय-बांहों में डूबा | तम में रहने दे कुछ पल, प्रिय-बांहों में डूबा | ||
क्या सब नहीं विचारा करता | क्या सब नहीं विचारा करता | ||
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00:16, 10 मार्च 2018 का अवतरण
अपलक पंथ निहारा करता
तुम कब आओगी
घर को रोज सँवारा करता
तुम कब आओगी
व्यथा-वेदना के दर्दीले साये में रहकर
गीत लिखे सुमुखि! तुम्हारे जाने के दुख सहकर
दिए तुम्हारे वचनों पर है ऐतवार मुझको
'आ जाऊंगी जल्दी ही' तुम गयी यही कहकर
पल वह नहीं बिसारा करता
तुम कब आओगी
आती हो तुम रोज़ मगर ख्वाबों में आती हो
बाहुपाश में मुझे समेटे प्यार जताती हो
कभी तुम्हारे हाथ मेरे हाथों में रहते हैं
कभी दूर ही खड़ी नयन से सब कह जाती हो
यूँ ही रात गुजारा करता
तुम कब आओगी
तुम आती, चंदा से कहता 'दूर अभी तू जा'
तुझे देख शरमा जाएगी मेरी महबूबा
तारों से कहता मुझको तू देख न ऐसे जल
तम में रहने दे कुछ पल, प्रिय-बांहों में डूबा
क्या सब नहीं विचारा करता
तुम कब आओगी