भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गृहस्थन होती एक लड़की / गोविन्द माथुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द माथुर }} गृहस्थन होती एक लड़की गेहूँ चावल दाल ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=गोविन्द माथुर | |रचनाकार=गोविन्द माथुर | ||
}} | }} | ||
− | |||
− | |||
गेहूँ चावल दाल | गेहूँ चावल दाल |
23:56, 2 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
गेहूँ चावल दाल
बीनते छानते उसकी
उम्र के कितने दिन
चुरा लिए समय ने
उसे अहसास भी नही हुआ
घर की चार दीवारी में
दिन रात चक्कर काटती
वह अल्हड़ लड़की
भूल गई दुनिया गोल है
उसे आता है
रोटी कों गोलाई देना
तवे पर फिरकनी की तरह घुमाना
पाँच बरस में
उसने सीखा है कम बोलना
ज़्यादा सुनना
मुस्कराना और सहना
उसकी शिक्षा
उपयोगी सिद्ध हो रही है
सब्ज़ी और नमक के अनुपात में
चाय और चीनी के मिश्रण में
वह नंगी अंगुलियों से
उठाती है गर्म दूध का भगौना
तलती है आलू प्याज की पकौड़ि़याँ
मेहमानो के लिए
उसे ख़ुशी होती है
बच्चों के लिए पराँठा सेकते हुए
कपड़ों को धूप देते हुए
उसने कभी नहीं सोचा
दीवारों के पार
कितनी धूप बाकी है अभी