भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नारी (दोहे) / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
कठिन परिस्थिति में सदा, लेती खुद को ढाल।
 
कठिन परिस्थिति में सदा, लेती खुद को ढाल।
 
नारी इक बहती नदी, जीवन करे निहाल।।
 
नारी इक बहती नदी, जीवन करे निहाल।।
 +
 +
नारी, नारी का नहीं, देती आयी साथ।
 +
शायद उसका इसलिए, रिक्त रहा है हाथ।।
 +
 +
खुशियों का गेरू लगा, रखती घर को लीप।
 +
नारी रंग गुलाल है, दीवाली का दीप।।
 +
 +
खुशियों को रखती सँजो, ज्यों मोती को सीप।
 +
नारी बंदनवार है, नारी संध्या दीप।।
 +
 +
तार-तार होती रही, फिर भी बनी सितार।
 +
नारी ने हर पीर सह, बाँटा केवल प्यार।।
 +
 +
पायल ही बेड़ी बनी, कैसी है तकदीर।
 +
नारी का क़िरदार बस, फ्रेम जड़ी तस्वीर।।
 +
 +
नारी को अबला समझ, मत कर भारी भूल।
 +
नारी इस संसार में, जीवन का है मूल।।
 +
 +
गुड़िया, कंगन, मेंहदी, नेह भरी बौछार।
 +
बेटी खुशियों से करे, घर आँगन गुलज़ार।।
 +
 +
बेटी को नित कोख में, मार रहा संसार।
 +
ऐसे में कैसे मने, राखी का त्योहार।।
 +
 +
बेटी हरसिंगार है, बेटी लाल गुलाब।
 +
बेटी से हैं महकते, दो-दो घर के ख़्वाब।।
 +
 +
तितली सी उन्मुक्त है, बेटी की परवाज़।
 +
किंतु कहाँ वह जानती, उपवन के सब राज।।
  
 
है सावित्री सी सती, बनती पति की ढाल।
 
है सावित्री सी सती, बनती पति की ढाल।

17:06, 18 फ़रवरी 2020 का अवतरण

सृष्टि नहीं नारी बिना, यही जगत आधार।
नारी के हर रूप की, महिमा बड़ी अपार।।

जिस घर में होता नहीं ,नारी का सम्मान।
देवी पूजन व्यर्थ है, व्यर्थ वहाँ सब दान।।

लक्ष्मी, दुर्गा, शारदा, सब नारी के रूप।
देवी सी गरिमा मिले, नारी जन्म अनूप।।

कठिन परिस्थिति में सदा, लेती खुद को ढाल।
नारी इक बहती नदी, जीवन करे निहाल।।

नारी, नारी का नहीं, देती आयी साथ।
शायद उसका इसलिए, रिक्त रहा है हाथ।।

खुशियों का गेरू लगा, रखती घर को लीप।
नारी रंग गुलाल है, दीवाली का दीप।।

खुशियों को रखती सँजो, ज्यों मोती को सीप।
नारी बंदनवार है, नारी संध्या दीप।।

तार-तार होती रही, फिर भी बनी सितार।
नारी ने हर पीर सह, बाँटा केवल प्यार।।

पायल ही बेड़ी बनी, कैसी है तकदीर।
नारी का क़िरदार बस, फ्रेम जड़ी तस्वीर।।

नारी को अबला समझ, मत कर भारी भूल।
नारी इस संसार में, जीवन का है मूल।।

गुड़िया, कंगन, मेंहदी, नेह भरी बौछार।
बेटी खुशियों से करे, घर आँगन गुलज़ार।।

बेटी को नित कोख में, मार रहा संसार।
ऐसे में कैसे मने, राखी का त्योहार।।

बेटी हरसिंगार है, बेटी लाल गुलाब।
बेटी से हैं महकते, दो-दो घर के ख़्वाब।।

तितली सी उन्मुक्त है, बेटी की परवाज़।
किंतु कहाँ वह जानती, उपवन के सब राज।।

है सावित्री सी सती, बनती पति की ढाल।
पतिव्रत नारी सामने, घुटने टेके काल।।

नारी मूरत त्याग की, प्रेम दया की खान।
करना जीवन में सदा, नारी का सम्मान।।

सूना है नारी बिना, सारा यह संसार।
वह मकान को घर करे, देकर अपना प्यार।।

नारी तू अबला नहीं ,स्वयं शक्ति पहचान।
अपने हक को लड़ स्वयं, तब होगा उत्थान।।

क्यूं नारी लाचार है, लुटती क्यूं है लाज।
क्या पुरुषत्व विहीन ही, हुई धरा ये आज।।