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"पक्षी और तारे / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर

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कुछ ही मिनटों पहले
 
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मेरी घिसी हुई पैंट सूर्यास्त से धुल चुकी है
 
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देर तक मेरे सामने जो मैदान है
 
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वह ओझल होता रहा
 
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मेरे चलने से उसकी धूल उठती रही
 
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इतने नम बैंजनी दाने मेरी परछाई में
 
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कि जैसे मुझे आना ही नहीं चाहिए
 
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00:50, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पक्षी जा रहे हैं और तारे आ रहे हैं

कुछ ही मिनटों पहले
मेरी घिसी हुई पैंट सूर्यास्त से धुल चुकी है

देर तक मेरे सामने जो मैदान है
वह ओझल होता रहा
मेरे चलने से उसकी धूल उठती रही

इतने नम बैंजनी दाने मेरी परछाई में
गिरते बिखरते लगातार
कि जैसे मुझे आना ही नहीं चाहिए