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| − | बोले हंस कर नबी फिर तुरत, | + | बोले हंस कर नबी फिर तुरत,   | 
| − | बार बार गिर, कहा  | + | बार बार गिर, कहा शिष्य ने   | 
| − | 'यह तो नामुमकिन है हजरत' | + | 'यह तो नामुमकिन है हजरत'   | 
| − | 'हो आजाद यहां तक, कहता | + | 'हो आजाद यहां तक, कहता   | 
| − | तुमसे एक पैर उठ उपर, | + | तुमसे एक पैर उठ उपर,   | 
| − | बंधे हुए दुनिया से, कहता | + | बंधे हुए दुनिया से, कहता   | 
| − | पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' - | + | पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -   | 
| − | + | पैगम्बसर का था यह उत्तर!   | |
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00:33, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
पैगम्बtर के एक शिष्य ने 
पूछा, 'हजरत बंदे को शक 
है आजाद कहां तक इंसा 
दुनिया में,पाबंद कहां तक?' 
'खड़े रहो!' बोले रसूल तब, 
'अच्छा, पैर उठाओ उपर' 
'जैस हुक्मा!' मुरीद सामने 
खड़ा हो गया एक पैर पर!  
'ठीक , दूसरा पैर उठाओ ' 
बोले हंस कर नबी फिर तुरत, 
बार बार गिर, कहा शिष्य ने 
'यह तो नामुमकिन है हजरत'  
'हो आजाद यहां तक, कहता 
तुमसे एक पैर उठ उपर, 
बंधे हुए दुनिया से, कहता 
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' - 
पैगम्बसर का था यह उत्तर!
 
	
	

